मुक्तक/दोहा

हमीद के दोहे

लफ्फाज़ी  होती  रही , हुई  तरक़्क़ी  सर्द।
समझ नहीं  ये पा  रहे , सत्ता  के  हमदर्द।
अबलाओं पर ज़ुल्म कर, बनते हैं जो मर्द।
निन्दा जमकर  कीजिये , मिलेंं जहाँ बेदर्द।
डंका अब बजने लगा , उसकाभी घनघोर।
एक ज़माने  तक रहा , जो इक नामी चोर।
हम सब ज़िम्मेदार हैं,सिर्फ नहीं इक आध।
भूख कराती है अगर , मानव  से  अपराध।
भागे   भीगे   ही   रहे , उस  दम  मेरे  नैन।
कर्बल के मज़लूम जब, आये  याद  हुसैन।
— हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - ahidrisi1005@gmail.com मो. 9795772415