मुक्तक/दोहा

मुक्तक

(1)

मैं जब भी याद करता हूँ मचलकर बैठ जाता हूँ,
अगर गाता हूँ अन्दर से अब अक्सर टूट जाता हूँ,
मैं लिखना खुद को चाहता हूँ तुझे बस ही पाता हूँ,
मगर तुझको जो लिखता हूँ तो खुद को भूल जाता हूँ।

(2)

जहाँ में आह भरने से भला भी कुछ नही होगा,
जरा नम चश्म करने से गला भी कुछ नही होगा,
जमाने के समर मे तुम खबर कर रोक लो उसको,
तुम्हारे बाद पथ पर वो चला भी कुछ नही होगा।

(3)

जो पैगाम ए मोहब्बत से जहाँ में खार रखते है,
वो दिल रखते हैं पर दिल के ही भीतर रार रखते हैं,
जुल्म की इन्तिहा से दिल मे फिर आने से मत डरना,
यहाँ दिल हम सनम हरदम बड़ा दमदार रखते हैं।

(4)

ये दिल और इश्क की बातों को छोड़ो अब नही कहना,
गई गुजरी मुलाकातों को छोड़ो अब नही कहना,
कि जब तुम जानते थे की मैं पागल हो ही जाऊंगा,
तो पागल पन की इन बातों को छोड़ो अब नही कहना।

(5)

बहुत ही अश्क बहने पर वो शोषित भी हो सकता है,
किसी उम्मीद पर जीवन समर्पित भी हो सकता है,
जमाना बन यहाँ जाबिर अगर अंगार उगले तो,
दिवाना हो के दिल शोलों पे शोभित भी हो सकता है।

पीयूष चन्द्र मिश्र

DOB-02/02/1999 पढ़ाई जारी M.Sc.(ag)ANDUAT KUMARGANJ AYODHYA गांव - बसौंहा, पोस्ट - मोतीगंज,जिला - सुल्तानपुर मोबाइल नंबर - 9005087128