कविता

औरत और उम्मीद

उम्मीदों के सुलगते चूल्हे पर जाने कितने युग बीत गए
साँचा बनाकर औरत का क्यों प्रभु तुम भी भूल गए ।
लो फिर से आया सुहाना सावन पतझड़ में फूल भी टूट गए ,
अश्रु बनकर छलक गए वो पहरे फिर से पनप गए ।
उम्मीदों के गहरे सागर में यूं कश्ती डगमग चलती है
पतवार के हों जैसे दोनों छोर जो आपस में उलझ गए ।
अरमानों की तपती ज्वाला में किसकी हस्ती चलती है ,
तिनका तिनका जोड़ा हौसला पत्ते सारे फिसल गए ।
महल दुमहले सोना चाँदी कब खुशियाँ दे पाते हैं ,
प्यार पाने की धुन में नफरत के किले संवर गए ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017