कविता

बालमन

बच्चे होते अजब निराले, मन के होते वह मतवाले,
न चिंता न फिक्र किसी की, वो होते अजब निराले।

भाई बहन सभी मिल आते , पानी देते पेड़ लगाते,
चुनते फूल गूंथते हार, इनको फूलों से अति प्यार।

मिलकर आये सब यह सारे, बना जुलूस लगाते नारे,
देश धर्म की जय जयकार, इनका है उत्साह अपार।

बालचरों का सुंदर वेश, इनपर गौरव करता देश,
सेवा के ये व्रती उदार, यश गाता है इनका संसार।

गुब्बारों से खेलें बच्चे , देखो लगते कितने अच्छे,
कभी न ये झगड़ा करते, नही किसी से वह डरते।

कितनी सुंदर इनकी क्रीड़ा, देते नही किसी को पीड़ा,
पशुपक्षी सबसे कर मेल,खेल रहे सब मिलजुल खेल।

बरखारानी आता देख , मस्ती से नाचे सबमिल एक,
करते पानी में है किलोल, न डरते हो जाते हैं शेर।

माँ को वे सब कुछ न समझते, माँ ममता करती सबसे,
भूख लगती तब दौड़े आते, माँ अब कुछ खाने को दो।

मन चंचल चितवन बच्चों का, झट से उछलकूद करते,
पापा की पिद्दी पर बैठकर , इठलाते सब मौज मनाते।

बेंत चीरकर बने चटाई, कुर्सी कैसी भली बनाई,
कहीं टोकरी का है काम, हम पाएंगे प्रथम इनाम।

— डॉ दिग्विजय शर्मा

डॉ. दिग्विजय कुमार शर्मा

शिक्षाविद, साहित्यकार, आगरा M-8218254541