इतिहास

उपेक्षा का शिकार, महान गणितज्ञ और भारत का सपूत गुमनामी में यूँ ही चला गया

हमारा भारत महान, अपने ही देश के महान व होनहार सपूतों को उनके जीते-जी न ठीक से पहचान पाता है, न उनका उचित सम्मान ही करता, उनकी जमकर उपेक्षा होती है, उदाहरणार्थ अभी दिवंगत हुए वशिष्ठ नारायण सिंह जो विश्वस्तरीय महान गणितज्ञों आर्यभट्ट, अलबर्ट आइंस्टाइन, रामानुजन, हरगोविंद खुराना, स्टीफेन हॉकिंग जैसे महान गणितज्ञों व वैज्ञानिकों की श्रेणी के भारतीय वैज्ञानिक को पारिवारिक, सामाजिक व सरकारी घोर उपेक्षाओं से मानसिक दबाव के चलते हुई स्मृतिलोप या सिजोफ्रेनिया जैसे भयंकरतम् दिमागी बिमारी में भी ढंग से इलाज तक भी नहीं किया गया, जबकि इसी सिजोफ्रेनिया से दशकों तक भयंकर पीड़ित रहने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्री एवम् गणितज्ञ जॉन फोब्र्स नैश उचित इलाज से ठीक होने के बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए थे तो उचित इलाज मिलने पर हमारे देश का यह सपूत स्वर्गीय वशिष्ठ नारायण सिंह क्यों नहीं ठीक हो सकते थे, परन्तु जब कुछ देखभाल हो तब तो ! समाचार पत्रों के अनुसार वे जब मरे तो उनकी मृत देह तक को उनके उनके पैतृक घर ले जाने के लिए उनके परिजनों को एम्बुलेंस तक के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा है। इससे अफ़सोसजनक बात और क्या हो सकती है?

ठीक यही हाल एक और भारतीय वैज्ञानिक स्वर्गीय हरगोविन्द खुराना के साथ भी अपना भारत महान काफी समय पूर्व व्यवहार किया था, उन्होंने अपना शोध विदेशों में पूरा करने के बाद स्वदेश लौटे तो यह देश उन्हें एक ढंग की नौकरी तक नहीं दे पाया, ताकि वे अपनी रोजी-रोटी के साथ-साथ अपने शोध को आगे बढ़ाएं, मजबूरन उन्हें पुनः विदेश का रूख करना पड़ा। प्रगतिशील विदेशी राष्ट्रों में प्रतिभा की वास्तविक कद्र होती है, वे लोग विलक्षण प्रतिभाओं को तुरंत पहचान जाते हैं।अमेरिका जैसा देश उन्हें हाथों-हाथ लिया। वही हरगोविंद खुराना अपने आगे के शोधों से नोबेल पुरस्कार तक जीते। चूँकि हरगोविंद खुराना भारत को छोड़ने में ही अपनी भलाई समझे, परन्तु वशिष्ठ नारायण सिंह भारत में रहने की महान गलती कर बैठे, उनके बाद की दयनीय और दुःखद कहानी तो यहाँ सभी को पता है।

सबसे दुःख की बात यह है कि इस महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ को विभिन्न पारिवारिक, सामाजिक व सरकारी उपेक्षापूर्ण बर्ताव से बहुत ही कम मात्र 35 वर्ष की उम्र में ही समृतिलोप या सिजोफ्रेनिया हो गई। जो व्यक्ति इतने अल्पायु में ही दुनिया के बेहतरीन उच्च शिक्षा व तकनीकी तथा अंतरिक्ष संस्थानों मसलन आईआईटी, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेटिसटिक्स, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, नासा आदिआदि में वरिष्ठ प्रोफेसर, रीडर, वैज्ञानिक आदि के पदों पर रहकर अपनी प्रतिभा का जबर्दस्त प्रदर्शन किया और जो अपने सिद्धांत ‘सायिकल वेक्टर स्पेस थ्योरी ‘ के बल पर अल्बर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षता के विश्वप्रसिद्धि प्राप्त सिद्धांत को चुनौती दे रहे थे, वे भी कोई साधारण व्यक्ति तो कतई नहीं थे।

संभव था भारत के इस उपेक्षित सितारे को अगर सही इलाज मिलता तो ये भी सिजोफ्रेनिया से दसियों साल पीड़ित अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन फोब्र्स नैश की तरह इस रोग से ठीक होकर इस दुनिया को अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत से भी आगे अपनी ‘साइकल वेक्टर स्पेस थ्योरी ‘ को सिद्ध करके दुनिया को और हजारों साल आगे ले जाता ! परन्तु बहुत-बहुत अफ़सोस इस अभागे गणितज्ञ व तेजस्वी वैज्ञानिक के शोध पत्रों को ढंग से संरक्षित ही नहीं किया गया समाचार पत्रों के अनुसार उनके सालों के कठिन शोध, गहन चिंतन से तैयार शोधपत्रों को उनकी पत्नी ने आग लगाकर पूरी तरह नष्ट कर दिया ! इससे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण बात क्या हो सकती है? हर तरफ उपेक्षा, तिरस्कार, अपमान से कोई भी व्यक्ति स्वर्गीय वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे स्मृतिलोप या सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो ही जायेगा । काश ! हम भी अपने उच्च प्रतिभाओं और अपने होनहार सपूतों को उनके जीवित रहते ही उनका कद्र करना सीख पाते !

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com