गीत/नवगीत

“नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे”

मीत बेशक बनाओ बहुत से मगर,
मित्रता में शराफत की आदत रहे।
स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं,
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।

भारती का चमन आप सिंचित करो,
भाव मौलिक भरो, शब्द चुनकर धरो,
काल को जीत लो अपने ऐमाल से,
गीत में सुर की धारा सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।

आपकी बात से, ज्ञान गंगा बहे,
मन में उल्लास हो, गात चंगा रहे,
बन्दगी में दिखावा कभी मत करो,
आशिकी में भी शुचिता सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।

मत घमण्डी बनो, बैर को छोड़ दो,
जिन्दगी सादगी की, तरफ मोड़ दो,
ढाई आखर का है बस यही फलसफा,
आदमीयत का ज़ज़्बा सलामत रहे।।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।

दिलरुबा नेह का धर्म तो जान लो,
आप अच्छा-बुरा कर्म तो जान लो,
‘रूप’ दरिया नहीं एक तालाब है,
साथ सूरत के सीरत सलामत रहे।
नेक-नीयत हमेशा सलामत रहे।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है