कविता

छोटी सी आशा

एक छोटी सी आशा,
ताकती मुझे बेतहाशा।
जब जब उसे मैं देखता,
छंटता जीवन का कुहासा।
शब्द मोती से लगते है,
जब वो मुझे पुकारती है।
मेरे उजड़े ख्यालों को वो,
नर्म उँगलियों से सवारती है।
मैं हस पड़ता हूँ ख्यालों में,
उलझता हूँ जब सवालों में।
वो मुस्कुराकर ख्वाबों में,
मेरे आकर टहल जाती है।
उदास धड़कन मेरी उसकी,
अदाओं से बहल जाती है।
वो ख्यालों में हैं है ख्वाबों में,
रूबरु आती नहीं कभी मेरे।
दिल में बसी वो हँसती,
खिलखिलाती नन्ही सी आशा।

— आयुष त्रिपाठी

आयुष त्रिपाठी

भोपाल मध्य प्रदेश