कविता

लालच और लाचारी

पहले लालच सवार हुआ

फिर लालच में लाचार हो गये
रिश्ते नाते इस जमाने में
सब लालची व्यापार हो गये
पहले जो खुशनसीबी
हुआ करती थी हमारी
वही बुरे आसार हो गये
वक्त करवट बदलता गया
और बुरे से बुरे लोगों के
अदब ए व्यवहार हो गये
जो हमारे करार का सबब थे
आजकल खुद बेकरार हो गये
जीने जाने का वक्त एक हुआ
जब वो जीने का आधार हो गये
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश