लघुकथा

पॉलीथिन

स्निग्धा ने सुबह-सुबह जैसे ही इलैक्ट्रिक कैटल ऑन की, तुरंत बंद हो गई. स्निग्धा हैरान थी. दुबारा भी ऐसा ही हुआ.

”रात तक तो ठीक चल रही थी, अब क्या हुआ!” मन में कहते-कहते स्निग्धा ने कैटल को हाथ लगाकर देखा, वह पहले से पूरी गरम थी.

”थैंक गॉड, कैटल ठीक है और शायद आज बहू मेरे उठने से पहले ही कॉफी बनाकर गई है. पिछले तीन दिनों से उसे सुबह कॉफी पीने का टाइम ही नहीं मिल रहा था.” उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं था.

कैटल के ताप से उसे सपने में देखा चित्र भी याद आ गया. एक बालानुमा महिला को तीन लोग उंगली दिखाकर कुछ-कुछ कह रहे थे. वह सिर झुकाकर सुन रही थी!

”अजी छोड़िए! वह वह सिर झुकाकर सुन नहीं रही थी, गुन रही थी.” स्निग्धा का स्निग्ध विचार था.

”आजकल पॉलीथिन के बिना हमारा गुजारा नहीं, हम तो उसका प्रयोग करते रहेंगे, बोलो तुम क्या कर लोगी!” मानो एक व्यक्ति कह रहा था.

”पानी बचाने की सोचें या समय पर ऑफिस पहुंचने की? बोलो, चुप क्यों हो?”

”प्रदूषण की चिंता करने का समय किसके पास है? फिर हमारे घर में, कार में और ऑफिस में तो एयर-प्यूरिफायर लगे हुए हैं, सानूं की!”

महिला का ताप बढ़ गया था या रोष, यह तो वही जाने, पर अब उसने अपने तेवर दिखाने शुरु कर दिए थे.

”ऐ मिस्टर, पॉलीथिन का प्रयोग नहीं छोड़ोगे तो मैं ही बंजर हो जाऊंगी, फिर अन्न-दालें, फल-मेवे, दवाइयां-औषधियां आदि कहां से पाओगे? इस पर ध्यान देना तुम्हारा काम है.” उसने काले कोट वाले को संबोधित करके कहा था. काले कोट वाले ने अपना कॉलर नीचे कर लिया था.

”ओ साहब, पानी नहीं बचाया तो केपटाउन जैसे बन जाएंगे चेन्नै, बेंगलुरु. केपटाउन समझते हो न! वर्ष 2017-18 में केपटाउन में जल संकट गहरा गया था जब दक्षिण अफ्रीका की राजधानी में पानी पूरी तरह खत्म हो गया था, एक-एक बूंद के लिए लोगों में त्राहि-त्राहि मच गई थी.” ग्रे शर्ट वाले की आंखें शर्म से झुक गई थीं.

”आप भी सुन लीजिए जनाब! गैस चैंबर का रोष कुछ और बढ़ा ना, तो तुम्हारे ये एयर-प्यूरिफायर के सभी गुब्बारे फुस्स हो जाएंगे, फिर सांस लेने के लिए मंगल पर जाओगे या शनि ग्रह पर!” वह अपनी ही नजरों में गिर गया था.

एक उंगली मेरी ओर उठाने वालो अच्छी तरह देख लो, कितनी उंगलियां तुम्हारी तरफ उठी हुई हैं.

एक उंगली सृष्टि को दिखाने वालों ने समझ लिया था कि उनकी अपनी तीन उंगलियां तो उनकी अपनी ओर ही इशारा कर रही थीं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “पॉलीथिन

  • लीला तिवानी

    समस्या आती रहती है उसको मैनेज करना होता है, जीवन में आयी समस्याओं से आँख चुराकर किनारा करने से समस्या हल नहीं होगी अपितु वो और बड़ी होती जाएगी, मनुष्य धर्म तभी सफल है जब संयम और विवेक से उन समस्याओं को हल किया जाए!! उसी से हमारा भी भला होगा, सृष्टि का भी.

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