अन्य पुस्तकें

“ढाई कदम”: एक समीक्षा

प्रिय पाठकगण,
आपको भलीभांति विदित है कि हम नए-नए लेखकों / कलाकारों से आपका परिचय करवाते रहते हैं. राकेश भाई हमको कैसे जानते हैं, ये तो हमें मालूम नहीं, पर हमारे पास मेल से उनके उपन्यास “ढाई कदम” पर समीक्षा लिखने का स्नेह-सिक्त अनुरोध आया था. हमने उपन्यास पढ़कर उस पर समीक्षा लिखी थी, जो राकेश भाई ने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित की थी. आज हम आपको राकेश भाई से भी परिचित करवाते हैं और उस समीक्षा से भी जो राकेश भाई ने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित की है-

वरिष्ठ रचनाकार लीला तिवानी जी ने
उपन्यास “ढाई कदम” पढ़ कर आशीर्वाद स्वरुप अपनी प्रतिक्रिया मेल द्वारा भेजी है, जिसे मैं यहां पोस्ट कर रहा हूं।
उपन्यास “ढाई कदम” पर प्रतिक्रिया

ढाई दिन के शहनशाह निजाम सिक्का का किस्सा पढ़ा-सुना था, ढाई दिन का झोंपड़ा भी देखा था, ढाई मिनट कदमताल करके एक मील चलने का लाभ घर में ही लिया जा सकता है, इसका अनुभव भी किया था। ढाई कदम उपन्यास पढ़कर यह सब याद आ गया था। उपन्यास “ढाई कदम” की मुख्य पात्र शिवांगी नामक एक स्त्री है, जो स्त्री होने के दंश को झेलती हुई, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ती है। पहला कदम तो मंजिल का प्रारंभ होता है, यह सोचकर वह संघर्ष करती रही। दूसरे कदम में भी समाज में व्याप्त मनोविकारों से संघर्ष करना ही उसकी नियति में लिखा था। पुरुष तो अक्सर ढाई कदम चलकर सब कुछ भुला देता है, पर स्त्री होने के नाते भावुक शिवांगी ऐसा नहीं कर पाई। ‘राधा और मीरा का जीवन कोई पुरुष जी ही नहीं सकता’, कहकर वह अनुराग को भी बैरंग लौटा देती है और प्रशांत को भी। पार्वती के समान पवित्रता का जीवन जीने को इच्छुक शिवांगी को अब तीसरा कदम सोच-समझकर उठाना था, इसलिए ही सम्भवतः वह ढाई कदम ही चल पाई।

राकेश कुमार श्रीवास्तव ‘राही’ का यह उपन्यास आज-कल के सामाजिक परिवेश में फैले मनोविकार, छद्म आचरण और विश्वासघात के महीन रेशों में फंसी एक स्त्री के लिए अपने लक्ष्य की तरफ कदम उठाने के संघर्ष एवं सफलता या असफलता के परिणाम पर जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद की कहानी है, जो पाठक को जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद के चलते भी एक नया रास्ता खोजने की प्रेरणा देने में सहायक है। पढ़ाई के लिए अकेले रहने के दौरान छात्रों को क्या-क्या मुश्किलें आती हैं, इसका अनुमान लगाना शायद मुश्किल हो, लेकिन दुनिया ऐसे ही चलती है। विद्यार्थी का कर्म है, अध्ययन करना और यही करना उसकी साधना है, यह तभी तक साधना रहती है, जब तक लक्ष्य पर नजर टिकी रहे, अन्यथा सब बेकार हो जाता है। कच्ची उम्र की दुश्वारियों, एक तरफा प्यार का दुष्परिणाम, संयुक्त परिवार की अपनी एक परम्परा को प्रोत्साहन, असफल होने पर संयुक्त परिवार का छांव बन जाना आदि इस उपन्यास की विशेषताएं हैं।

110 पेज एवं 8 खंड का यह उपन्यास प्रकृति की सुंदरता की प्रतीकात्मकता से सुसज्जित है। इसे उपन्यास की इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-

“आकाश में पूनम का चाँद सदैव की भाँति, अपनी रौशनी से सभी को नहला रहा था। चाँदनी रात में सितारे टिमटिमा रहे थे, तभी पूनम की रात अमावस्या की रात में तब्दील हो गई। एक बहुत बड़े काले बादलों के समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढँक लिया था और तारे बेबस होकर बादलों की करतूत को देख रहे थे।”

प्यार के अंत और प्रकृति के सामंजस्य को देखिए- ”सूरज ढल चुका था, अपने घोंसले की तरफ जाने के लिए पक्षी कोलाहल करते हुए आज की अंतिम उड़ान भर रहे थे.”

प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास की साहित्यिक हिंदी भाषा का अनवरत प्रवाह आगे की कथा को जानने की उत्सुकता बढ़ाने में तो समर्थ है ही, अनेक सामाजिक समस्याओं के समाधान में भी सक्षम है.

-लीला तिवानी
शिक्षा- हिंदी में एम.ए., एम.एड.
ब्लॉग https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

राकेश राही का संक्षिप्त परिचय
नाम : राकेश कुमार श्रीवास्तव
जन्मदिन :13-03-1968
पत्नी का नाम : श्रीमती काजल किरण: मनोविज्ञान में कला स्नातक (प्रवीण)
शादी की सालगिरह : 20 जून
पिताजी का नाम : स्व. प्रो. सुरेंद्र प्रसाद वर्मा
माता का नाम : ललिता वर्मा
डायरी के पीले होते पन्नों से, किशोरावस्था में लिखी हुई रचनाओं एवं विचारों को मुक्त कर अपने ब्लॉग “राकेश की रचनाएँ” पर लिख, ब्लॉग यात्रा शुरू करने वाले श्री राकेश कुमार श्रीवास्तव “राही” मूलतः मोतिहारी, बिहार के रहने वाले हैं और विगत पच्चीस वर्षों से भारतीय रेल के यांत्रिक अभिकल्प (मैकेनिकल डिज़ाइन) विभाग में अपना योगदान देने के अलावा हिंदी के विकास में अपना योगदान देते आए हैं। जिसके फलस्वरूप इन्हें विभागीय स्तर पर विभिन्न पुरस्कारों के अलावा विभिन्न पत्रिकाओं में इनके यात्रा-वृत्तांत, लघु-कथाएँ एवं कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। उपन्यास लेखन के क्षेत्र में इनका यह पहला प्रयास है और आप सभी सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। मुझे उम्मीद है कि इनकी विशिष्ट लेखन शैली से आप अवश्य प्रभावित होंगे। इस उपन्यास के पात्रों में आप स्वयं को या आपके समाज में मौजूद व्यक्ति को महसूस करेंगे। लेखक घटना क्रम की गति और रहस्य को बनाए रखने में पूर्णतः सफल हुआ है, जिससे आप पाठक इस उपन्यास को बिना अवरोध पढ़ना चाहेंगे।

राकेश राही

चलते-चलते आपको बताते चलें कि राकेश भाई का तख़ल्लुस ‘राही’ है, जो उनके स्वभाव से मेल खाता है. ‘राकेश’ और ‘राही’ में ‘रा’ अनुप्रास की छटा भी दर्शनीय है. राकेश भाई तन-मन से राही प्रवृति के हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on ““ढाई कदम”: एक समीक्षा

  • राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

    लीला दीदी, मैं आपके स्नेह का कायल हो गया हूँ | आपने मुझे साहित्य जगत के सामने प्रस्तुत कर आप अपने इस छोटे भाई को जो सम्मान दिया है उसके लिए में आपका शुक्र गुजार हूँ | आप सभी पाठकगण से अनुरोध हैं कि आप मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें |

    • लीला तिवानी

      प्रिय राकेश भाई जी, आप तो पहले से ही स्वयं स्थापित हैं. अपनी रचना हमारे ब्लॉग को देकर आपने हमारे ब्लॉग का सम्मान बढ़ाया है.
      हमारा मानना है कि स्नेह से स्नेह और सम्मान से सम्मान मिलता है. तदनुसार हम इसका अनुसरण करते चले जाते हैं, रास्ते अपने आप सरल होते जाते हैं और आप जैसे स्नेहिल ‘राही’ मिल जाते हैं. आपने पहल की, बहुत-बहुत शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय राकेश भाई जी, आपको उपन्यास “ढाई कदम” के लिए कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. इसी तरह आप हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहिए, यही हमारी मनोकामना है. हमेशा की तरह यह रचना अपना ब्लॉग के साथ फेसबुक, ट्विटर और जय विजय वेबसाइट पर भी प्रकाशित हो गई है. एक बार फिर आपको कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं.

Comments are closed.