लघुकथा

नादान

”जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
कैसे नादान हैं शोलों को हवा देते हैं.”

”शोलों को हवा देने तक की नादानी तो ठीक है, पर हम तो हवा को शोले दिखाने लग पड़े हैं.” आलोक शायद अपने आप से बात कर रहा था. ”ऑस्ट्रेलिया तक में कोरियर सावधानी बरतते हुए प्रदूषण से बचाव के लिए फेस मास्क लगाते हैं और पार्सल हटाने से पहले दस्ताने पहनते हैं. इतनी कवायद पर्यावरण के प्रदूषण के कारण है. इस प्रदूषण का कारण भी हम हैं और हम ही प्रदूषण से बचने के कोई उपाय भी नहीं सोच रहे! दिल्ली का हाल देखिए, प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार को लगाई कड़ी फटकार, कहा- दम घोंटने से अच्छा बारूद से सबको उड़ा दो.”

”नादानी तो है ही, सच में हम 16 साल की क्लाइमेट चेंज कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग से भी कुछ नहीं सीख पा रहे हैं. अपनी सुविधा के लिए हम सुविधाभोगी प्लास्टिक के प्रयोग को ही नहीं छोड़ पा रहे!” आलोक ने फिर अपने से कहा.

”हम सुविधाभोगी सुविधा के लिए स्वास्थ्य दांव पर लगाने को तैयार, हम सत्ता लोलुप सत्ता और कुर्सी के लिए सभी संबंधों की अवज्ञा करने को तैयार, अपना भला-बुरा न सोचते हुए किसी-न-किसी नशे में चूर होने को तैयार, अपने मन की करने को हम अपनी गृहस्थी में——, अरे रेरेरेरे… ये मैं क्या सोच रहा हूं? आलोक सचेत हो जाओ!” सम्भवतः वह खुद को ही सचेत कर रहा था.

”अरे, मैं आलोक तो पहले से ही सचेत और सजग हूं. यह समाचार देखो-
”मध्य प्रदेश: पत्नी को प्रेमी से मिलाने के लिए पति तलाक को तैयार”
एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर ने फैमिली कोर्ट में अपनी पत्नी को इसलिए तलाक देने की पेशकश की है, ताकि उसकी पत्नी अपने पहले प्यार यानी प्रेमी के साथ खुशी से जिंदगी बिता सके!”

”वो क्या, हम सब भी तो नादान हैं. पानी, बिजली, अन्न, प्राप्त सुविधाओं की बचत करना तो दूर, उनका अनाप-शनाप दुरुपयोग कर रहे हैं, अति सर्वत्र वर्जयेत जानते हुए भी मोबाइल का जमकर प्रयोग कर रहे हैं, बच्चों को बाहर खेलने देने के बजाय हाथ में मोबाइल पकड़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझने लग गए हैं, इससे ज्यादा और मैं क्या कहूं?” आलोक का दिमाग भन्ना गया था.

”ठहरिए-ठहरिए, अभी से ही आप कहां चल दिए? नादानी की इंतिहा तो सुनते जाइए! एक व्यक्ति किसी छोटे-से प्रांगण में फंस गया था. उसके पास बाहर निकलने के लिए लकड़ी की अच्छी-खासी सीढ़ी थी, उसके सहारे बाहर निकलकर वह अपना बचाव कर सकता था, पर उसने ठंड से बचने के लिए उसी सीढ़ी के पायदान तोड़कर आग जलाकर ठंड से त्वरित राहत तो पा ली, पर अपने बाहर निकलकर सभी सुविधाएं प्राप्त करने का रास्ता हमेशा के लिए बंद कर दिया. कुछ देर के आराम के लिए उसने अपने बचाव के सभी अवसरों को जला दिया. नादान!”

आगे कहने के लिए आलोक के पास अब बाकी बचा ही क्या था!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “नादान

  • लीला तिवानी

    नादानी इसे कहते हैं-
    अगर किसी को लगता है कि उसके एकाउंट में पैसे ही इतने कम हैं कि कोई लूट भी ले तो कोई बात नहीं, वह बड़ा मासूम है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ऑनलाइन फाइनैंशल फ्रॉड के जो ताजा ब्यौरे जारी किए हैं, उनकी जानकारी इन मासूमों को जरूर होनी चाहिए। पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा डिजिटल अटैक ऐसे ही मासूमों की जेब पर हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2018-19 में साइबर ठगी में एक लाख रुपये से ज्यादा गंवाने वालों की संख्या 1866 है जबकि इससे कम गंवाने वालों की संख्या 50,438 है। हैकरों ने इस वित्तीय वर्ष में आम आदमी के डेढ़ सौ करोड़ रुपये पार किए हैं और इतनी ही रकम उन्होंने पिछले वित्तीय वर्ष में भी उड़ाई थी। ऐसे फ्रॉड रोकने के लिए सरकार अपनी समझ से काफी कुछ कर रही है, पर फायदा कोई खास नहीं हो रहा।

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