कविता

इश्क सूफियाना

एक सूफियाना प्रयास
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ये इश्क और इश्क की दास्तां भी अजीब है
कल तक जो थे अजनबी ,आज दिल के करीब है
इश्क की दौलत से जिसे रब ने नवाजा
वही तो है अमीर , बाकी दुनिया गरीब है
इश्क है खुदा से , जुदा हो न जाना ऐ दिल
इश्क ही इबादत और इश्क ही रकीब है
आशिक हूँ अब मैं तेरा ,महबूब है तू मेरा
अब दे पनाह मुझको , तेरी दुनिया अजीब है

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।