कविता

कदम तुम, बढ़े चलो

देख ध्यान हटे नहीं
गंतव्य पथ मिटे नहीं
लक्ष्य में निगाहे ,
राह और दिखे नहीं
चले चलो, चले चलो
कदम तुम, बढ़े चलो

आँख कान सजग रहे
सोया जग तू जग रहे
शत्रुआलस्य कामना से,
सतर्क पग-पग रहे
गिरे मगर, उठे चलो
कदम तुम, बढ़े चलो

दामिनी सी चाल हो
इच्छा शक्ति ढाल हो
हार को चीर दे ,
कर्म हमारा भाल हो
बढ़े चलो, बढ़े चलो
कदम तुम, बढ़े चलो

बड़ों का सम्मान करें
गुरु का गुणगान करें
न हो कोई बैर भाव,
न किसी का अपमान करें
गले मिल, चले चलो
कदम तुम, बढ़े चलो

— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’