लघुकथा

आत्महत्या

सुबह-सुबह सैर करते हुए शिवानी को देख एक कौवे ने कांव-कांव करनी शुरु कर दी.

”क्यों मेरी कांव-कांव कड़वी लगी?” शिवानी को गुस्से से रुकते देख कौवे ने कहा, ”वैसे भी सच बात तो कड़वी ही लगती है न!”

”तुम तो कांव-कांव कर रहे हो, कौन-सी सच्ची बात बोल रहे हो?” शिवानी कौवे की बात पर हैरान थी.

”आत्महत्या, मेरा मतलब है तुम लोग आत्महत्या की तरफ बढ़ रहे हो और इसका तुम्हें पता भी नहीं लग रहा.”

”वो कैसे!” शिवानी का हैरान होना स्वाभाविक था.

”बेहद लोकप्रिय हुई फिल्म सीरीज अवेंजर्स का खलनायक थैनोस धरती सहित ब्रह्मांड की आधी आबादी को खत्म कर देता है, पर हकीकत में तो ऐसा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इस धरती पर रहने वाले तुम इंसान पहले ही सामूहिक आत्महत्या के रास्ते पर चल पड़े हो, जिसके कारण हम मासूम पक्षी भी उसी ओर जा रहे हैं.”

”तुम और मासूम!” स्थिति की गंभीरता को न समझते हुए शिवानी ने तंज किया.

”आज के राजनीतिज्ञों की तरह तंज करना ही तुम्हें आता है, स्थिति की गंभीरता को समझो और सबको समझाओ. हवा और पानी जहरीले हो रहे हैं, भूगर्भ के खजाने खाली हो रहे हैं, तापमान चढ़ रहा है, धरती के सुरक्षा कवच टूट रहे हैं, विशाल ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र धरती को निगलने के लिए बढ़ रहा है, मौसम का चक्र गड़बड़ा रहा है, बाढ़ और सूखे के अचानक हमलों से हाहाकार मच रहा है. —-”
”हम लोग भी बहुत चिंतित हैं.” कौवे को बीच में ही टोकते हुए शिवानी बोल पड़ी—.

”पता है, पता है,” कौवे ने भी बीच में टोकते हुए शिवानी से कहा, ”तुम लोग दो-चार दिन दिल्ली के स्मॉग या केरल की बाढ़ की चर्चा करते हो और फिर अपनी नींद में लौट जाते हो. महाविनाश के कदमों की गूंजती आहट को तुम सुनने से इनकार कर देते हो. पृथ्वी की लाखों प्रजातियों में अकेले तुम ही हो, जो खुद को इस तरह आत्महत्या के लिए तैयार कर सकते हो और अफसोस भी नहीं करते हो—”

शिवानी कुछ बोलने को थी कि कौवे ने उसे रोकते हुए कहा, ”आज मेरी कड़वी बात सुन लो, शायद कुछ काम आए. तुम जानते हो दो हफ्तों से जल रहे हैं दुनिया के फेफड़े, जिनका आपके जीवन पर पड़ेगा सीधा असर?”

शिवानी दुनिया के फेफड़ों के बारे में कुछ सोचने लगी कि कौवा फिर बोला, ”मुझे पता था कि तुम्हें दुनिया के फेफड़ों के बारे में कुछ नहीं पता है. अमेजन के जंगलों को दुनिया के फेफड़े कहा जाता है. आजकल अमेजन के जंगलों में आग लगी हुई है और यह आग इसलिए लगी हुई है कि तुम लोग अपने रहने के लिए जगह बनाने के लिए लगातार वृक्षों को काटते जा रहे हो. किसान इसलिए जंगलों में आग लगा रहे हैं, कि उन्हें खेती के लिए जमीन मिल सके. यह सब आबादी बढ़ने के कारण ही हो रहा है और सब धीरे-धीरे आत्महत्या की तरफ बढ़ते जा रहे हैं.” इंसानों, कीटों और पक्षियों के दर्द को कौवा मुखर कर रहा था.

”अमेजन के वर्षावनों को दुनिया का फेफड़ा भी कहा जाता है. दरअसल, यह पूरी दुनिया में मौजूद ऑक्सीजन का 20 फीसदी हिस्सा उत्सर्जित करते हैं. यहां 16 हजार से ज्यादा पेड़-पौधों की प्रजातियां हैं. अमेजन के जंगलों में करीब 39 हजार करोड़ पेड़ मौजूद हैं. यहां 25 लाख से ज्यादा कीड़ों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं. वृक्षों के कटने-जलने के साथ कीटों और पक्षियों की जान पर तो बन ही आई है, तुम मानव भी सर्वनाश की तरफ चलते जा रहे हो. आज तुम्हें सांस लेने में दिक्कत आ रही है, इसे अस्थमा का नाम देकर उसके इलाज में जुट जाते हो. जल्दी ही तुम्हारा दम घुट लगने लग जाएगा, तब पछताने से कुछ नहीं होगा.” स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सचमुच शिवानी का दम घुटने लगा था, उसने कान बंद कर लिए.

”फिर क्या करें?” उसने पूछा. वह समझ गई थी कि महज कान बंद करने से कुछ नहीं होगा, कुछ ठोस सोचना और करना भी होगा.

”मेरी तरह सचमुच के स्वच्छता दूत बनो, घर-बाहर सफाई रखो और किसी दूसरे के या सरकार के भरोसे मत रहो, गीले कचरे, रिसाइकिल कचरे, खेती के कचरे और ई. कचरे को अलग-अलग रखो और उनका सही ढंग से निपटारा करो, पॉलीथिन का प्रयोग बंद करो, पेड़ों का काम कार्बन को लेकर ऑक्सिजन देने का होता है, पेड़ों की संख्या घटने से ऐसा नहीं हो पाएगा, इसलिए वृक्ष काटने का कुकृत्य मत करो, प्राप्त सीमित साधनों का सीमित प्रयोग करो, लोभ-लालसा छोड़कर ईमानदारी से अपने मन को मजबूत बनाओ, अपने और सृष्टि के प्रति संवेदनशील बनो. संवेदनशीलता ही तुम्हें आत्महत्या से बचाएगी.”

आत्महत्या के पथ पर अग्रसर न होने के प्रति सचेत कर कौवा उड़ गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “आत्महत्या

  • लीला तिवानी

    पृथ्वी की रक्षा के लिए नया प्रयास-
    म्यूजिक शो से भी धरती को खतरा, रोकने की तैयारी

    कानों को सुकून देने वाले संगीत के कारण भी हमारी धरती के पर्यावरण पर असर पड़ रहा है। यह बात शायद चौंकाती हो, लेकिन हाल में आए कुछ आंकड़े बताते हैं कि लाइव म्यूजिक शो के कारण केवल ब्रिटेन में ही हर साल 4.05 लाख टन ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। ये गैसें धरती का तापमान बढ़ने यानी ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। अब मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक ऐसा तरीका खोजने में लगे हैं, जिससे पॉप स्टार और म्यूजिक बैंड अपने लाइव कार्यक्रमों में लोगों को झुमाते भी रहें और इसका हमारे पर्यावरण पर कोई असर भी न पड़े। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा उपाय खोजने का प्रयास है, जिससे प्रोग्राम के दौरान कम कार्बन डाई ऑक्साइड गैस निकले।

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