हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – क्या  से क्या हो गई ….ये हवा

इंदौर नगरी अपने भाई के पास घूमने आए  दामोदर ने सुनील से कहा छुटके  यहां बड़ा दम घुट रहा है   घर के अंदर की हवां में भी धुएं की महक आ रही है‌ भाई साहब बहुत साल बाद दिल्ली आये हो यहाँ की तो हवा पानी सब खराब हो गया  है । छुटके पानी की तो समझ आती है पर ये  हवा किसने खराब करदी ये बात तो भाईसाहब अभी तक मेरी भी समझ में  नहीं आई।   भाई साहब तैयार हो जाईये  आक्सीजन पार्लर हो आते हैं।  आक्सीजन कम सी  लग रही है शरीर कुछ ढीला लगरहा है सांस लेने में भी दिक्कत लग रही है  चले कई दिनों से आक्सीजन नहीं सूघीं ये क्या  कह रहे हो छुटके  ?
अरे! भाई साहब अब  जिन्दगी बचानी है तो आक्सीजन तो सूंघनी पड़ेगी कह तो तू सही रहा‌ है ये प्रशासन कुछ नहीं करता क्या ? भाईसाहब कर तो रहा आड़ इवन आड ईवन का खेल चल रहा है । पानी की पहले ही  ऐसी हालत की पीते बने ना उगलते ।
ओह ! छुटके दे ताली … हाहाहाहाहा ……सुनिये  भाई साहब हँसिये मत गंदी हवा फैफड़ो में घुस जायेगी ।
चलिए आप गाड़ी में बैठिए मैं सुरेखा और बच्चों को भी देखता हूं तैयार हुए या नहीं सभी एक साथ चल कर आक्सीजन ले लेंगे ‌।
सुनील ने आवाज लगाई ।
 सुरेखा !  तैयार हो गई हो तो नीचे आ जाओ बच्चों को लेकर आक्सीन पार्लर चलना है ।
सुनील आप चलो मैं अभी‌ आई ।
सुरेखा मिंकी और अंशुल  को लेकर  लेकर  पार्किंग पहुंची  देखा  भाईसाहब और सुनील गाड़ी में पहले से ही विराजमान थे । सुरेखा पिछली सीट पर बच्चों के साथ बैठ गई ।
गाड़ी चलपड़ी न्यूमार्केट और जाकर बाजार में रुकी सामने ही आक्सीजन पार्लर था
 आक्सीन पार्लर में घुसते ही एक  सुंदरी रिसेप्शन पर मुस्कान बिखरती हुई मुखातिब हुई सर आप कौन सी आक्सीजन लेंगे गुलाब मोगरा चम्पा या फिर चमेली और स्पेशल में शेफाली की मिलेगी बताएं आज कौन सी आक्सीजन सूघेंगे । हमारा ध्यान रंग-बिरंगी आक्सीजन के मनमोहक रंगों में में उल्झा हुआ था भाई साहब बताइए कौन सी आक्सीन बुक करु आपके लिए सुनील   मेरे लिए तो शेफाली ही बुक कर दें अब आये  हैं तो सबसे अच्छी वाली ही सूंघ लेते हैं । रिसेप्शनिस्ट ने दो पर्ची काट दी और वेटिंग रुम में अपनी बारी की प्रतीक्षा करने के लिए कहा । सामने ही एक बड़ा सा व्यवस्थित कमरा बढ़िया सोफे बैठने के लिए वही बैठ कर प्रतिक्षा करने लगे आसपास बहुत सारी महिलाएं वार्त्तालाप कर रही थी आक्सीजन की खुशबू और रंगों की  तारीफों के पुल बांध रही थी लेकिन हमने तो कुछ और ही रसायन शास्त्र की किताब में  पढ़ा था की आक्सीजन रंगहीन गंधहीन होती है आज ये थ्योरी गलत सिद्ध हो रही है । एक नये रसायन शास्त्र की रचना करने का मन कर रहा है । सामने की दीवार पर लगे डिजिटल बोर्ड पर अपना और छुटके का नाम पढ़ कर लगा जरा पहले आक्सीजन सूघंले फिर नई थ्योरी लिखेंगे ।
पार्लर वाले ने हमें एक बहुत ही आराम दायक कुर्सी पर विराजमान किया और नलकी नाक में लगा दी कसम से ऐसी आक्सीजन नहीं सूंधी आनंद की अनुभूति हो रही थी लेकिन मन के एक कौने से आवाज आई   प्रभू तेरी बनाई इस दुनियां क्या से क्या हो गई पहले पानी बिकता था अब हवा बिक रही है ।
— अर्विना 

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु