कविता

गुफ्तगू

गुफ्तगू के समन्दर में नहाके देखो
हर मसला सुलझ जाएगा
यूं गुमशूम गुमशूम रहने से
मसला और भी उलझ जाएगा।
हसरत यदि हो पास आने की
गूफ्तगू का जरिया बना के रखना
मुश्किलों के दौर चलते रहेंगे
आशा का दीप जला के रखना।
वो सुबह जरूर आएगी एक दिन
गूफ्तगू की महफिल सजा के रखना।
लंबी नही होती काली अंधेरा
सुबह का श्रृंगार बचा के रखना
वो सुबह जरूर आएगी एक दिन
गूफ्तगू की महफिल सजा के रखना।
चंद साये हैं झंझटो के
जैसे आसमानो में बादल टुकडो के
बरसते नही ये अंधेरे कर जाते
धूप का साथ चंद घडी के लिए छुडा जाते
बादलो के हटते ही धूप
पुनः धरती पर छा जाती
इन झंझटो को बादल समझकर
आशा रूपी धूप का इन्तजार रखना
वो सुबह जरूर आएगी एक दिन
गूफ्तगू की महफिल सजा के रखना।
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)