कहानी

छद्म वेश 

शाम  धुंध में डूब चुकी थी होटल की ट्यूटी खत्म कर तेजी से केमिस्ट की दुकान पर पहुंची। उसे देखते ही केमिस्ट सेनेटरी पैड को पेक करने लगा। रंजना ने उससे कहा इसकी जगह मेन्सुअल कप दें दो। केमिस्ट ने एक पैकेट उसकी तरफ बढ़ाया। मधुकर सोच में पड़ गया। रंजना इससे बेखबर पैकेट को अपने बैग में डाला और घर  की तरफ कदम बढ़ा दिए। रंजना ने बीच बीच  में अपने आजू बाजू देख लेती। सर्दियों की रात सड़क अक्सर सूनसान हो जाती है। रंजना को  पीछे से पद चाप लगातार सुनाई दे रही थी, पर उसने पीछे मुडकर देखना उचित नहीं समझा। अपनी चलने की रफ्तार बढ़ा दी । अब उसके पीछे ऐसा लग रहा था कि कई लोग चल रहे थे ।दिल धड़कने बढ़ गई थी ।भय से चेहरा पीला पड़ गया था । घर का मोड़ आते ही वो मुड़ गई।
पद चाप अब सुनाई नहीं दे रही थी । ये सिलसिला कई दिनों से चल रहा था पद चाप गली मोड़ पर आते ही गायब हो जाती थी। घर में भी किसी से इस बात का ज़िक्र नहीं कर सकती । नौकरी का बहुत शौक था । घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मैं तो बस शौकिया नौकरी कर रही थी। स्त्री स्वतंत्रता की पक्ष धर थी पर खुद को छद्म वेश में छुपाकर ही रखती थी । स्त्रीयोचित साज श्रृंगार की जगह पुरुष वेश भूषा में रहती रात में लौटती तो होंठों पर आईब्रो पेंसिल से रेखाएं बना लेती। अंतरंग वस्त्र टाईट करके पहनती ताकि स्त्रियोचित उभार दिखाई ना दे। इससे मुझे रात में जब लौटती तो भय नहीं लगता था । लेकिन कुछ दिनों से पीछा करती पदचापों ने उसके अंदर की स्त्री को सोचने पर मजबूर कर दिया  । रंजना ने घर के गेट पर पहुंच कर अपने होंठ टिशू पेपर से साफ किये और नार्मल होकर घर में मां के साथ भोजन किया और सो गई। होटल जाते हुए आज उसने सोचा कि आज वो जरुर देखेगी कौन उसका पीछा करता है।
रात जब रंजना की ड्यूटी खत्म हुई बैग उठाकर घर की और चल दी । अभी कुछ दूर ही चली थी कि पीछे पदचाप सुनाई दी। रंजना ने हिम्मत करके पीछे देखा, घने कोहरे की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया। एक साया धुंधला सा दिखाई दिया, जैसे ही वो पलटी काले ओवर कोट में एक अंजान पुरुष उसके सामने खड़ा था । रंजना को इतनी सर्दी में पसीना आ गया शरीर कांपने लगा आज लगा स्त्री कितना भी पुरुष का छद्म वेश धारण कर लें शारीरिक तोर पर तो वह स्त्री ही है । फिर भी रंजना ने हिम्मत बटोर कर  कहा मेरा रास्ता छोड़ो मुझे जाने दो।
मैं मधुकर तुम्हारे होटल के करीब एक आईटी कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। तुम इस होटल में काम करते हो ये तो में जानता हूँ। तुम शादीशुदा हो क्या ?
रंजना ने नहीं में गर्दन हिलाई ।
रंजना जरुरत से ज्यादा डर गई उसका बैग हाथ से छूट गया सारा सामान बिखरा गया रंजना अपना सामान जल्दी-जल्दी समेटने लगी लेकिन मधुकर के पैरों के पास पड़ा केमिस्ट कै यहां से खरीदा मेंसुअल कप उसकी पोल खोल चुका था । मधुकर ने पैकेट चुपचाप उठाकर उसके हाथ में रख दिया ।
तुम इस छद्म में क्यों रहती हो? मेरी इस बात का जवाब दे दो मैं रास्ता छोड़ दूंगा ।
रात की ड्यूटी होने की वजह से ये सब करना पड़ा
स्त्री होने के नाते हमेशा भय ही  बना रहता इस छद्म वेश में किसी का ध्यान मेरी ओर नहीं गया लेकिन आप…ने कैसे जाना । रंजना मैंने तुम्हें केमिस्ट की दुकान पर पैकेट लेते देख लिया था ।
ओह ! ये बात है ।
मैं तुम्हें पसंद करता हूँ तुम्हारे माता-पिता से मिलना चाहता हूँ । क्या मैं कल सुबह  आ सकता हूँ तुम्हारे घर ?
रंजना ने धीरे से सिर हिला दिया । रंजना चलो में तुम्हें गली तक छोड़ देता हूँ ।
दोनों खामोश साथ साथ चलते चलते गली तक आ गए ।
मधुकर रंजना से विदा लेकर चला गया। रंजना के ह्रदय में प्रेम के सागर ‌की लहरें उठने लगी । घर पहुंच कर आज रंजना ने सब कुछ मां को बताया और मधुकर के कल सुबह आने बात भी कही माँ मुस्कुरा उठी ।
सुबह एक नया ख्वाब लेकर रंजना की जिंदगी में  आई थी । ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रंजना खुद को पहचान नहीं पा रही थी । माँ की साड़ी में लिपटी रंजना श्रृंगार किए किसी अप्सरा सी लग रही थी । मधुकर ने आकर मां और पापा से मेरा हाथ माँग लिया वे सहर्ष तैयार हो गए । जो अंजाने में ही ‌उनकी बेटी ‌की  परवाह कर रहा था वो एक अच्छा जीवन साथी होगा हमारी रंजना के लिए ।  छद्म वेश उतर चुका था । हया की लालिमा से रंजना का चेहरा सुर्ख हो गया था ।
— अर्विना 

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु