कविता

बेटी बचाओ का नारा खतरे में

मछली सी हो गयी हो तुम ,
बाहर निकलो तो मर जाओगी ।
भेड़िये से बैठे है दरिंदे ,
इनसे कभी ना बच पाओगी ।।
कब तक यूँही चलता रहेगा ,
कब तक लड़कियां जलती रहेगी ।
निर्भया,दिव्या,आशिफ़ा,प्रियंका ,
ना जाने कितनी ओर सहेगी ।।
आख़िर कबतक जुल्म सहोगी ,
कब तलक जलाई जाओगी ।
डाल दो एक कटार पर्स में ,
फूलन देवी  बन जाओगी ।।
नहीं सुनेगी सरकार तुम्हारी ,
नहीं बचा अब कोई इंसान ।
बनो शेरनी करो प्रहार तुम ,
तभी बचेगी तुम सब की जान ।।
साध्वी के बयान महत्वपूर्ण ,
सता पलट के नाटक जरूरी ।
सालों लग गए राम न्याय में ,
बेटियों को कब मिलेगी मंजूरी ।।
नेताजी को थप्पड़ मारा ,
अभिनेत्री ने क्या है पहना ।
यही सब दिखाती मीडिया बिकाऊ ,
तुझे कब न्याय मिलेगा बहना ।।
पशुओ का इलाज करती थी ,
पर बीमार थे  वहसी इंसान ।
नोच-नोच कर जला दिया ,
और बेच दिया अपना ईमान ।।
जनता को ही लड़ना होगा ,
गब्बर अब हमे बनना होगा ।
बलात्कारी  हिन्दू हो या मुस्लिम ,
इंसाफ तो अब करना होगा ।।
उठो शेरनियों दिखा दो ज्वार ,
फिर न करेगा कोई अन्याय ।
थाम लो अब तुम सब हथियार ,
दिला दो इन बेटियों को न्याय ।।
सरकार तुम फांसी मत देना ,
और मत डालो इनको तुम जेल ।
जनता को सौंप दो उन सालो को ,
फिर दिखाएंगे गुनाह का खेल ।।
अंग भंग कर दो सालो के ,
फिर जिंदा रह कर पछतायेंगे ।
डाल पिंजरे में छोड़ दो जू में ,
फिर लोग थूक-थूक कर जाएंगे ।।
बेटी बचाओ का नारा खतरे में ,
खतरे में हैं नारी शक्ति महान ।
भारत देश की आन खतरे में ,
फिर कैसे कह दूँ मैं भारत महान ।।
जब-जब भारत माँ की बेटियां ,
खून के आंसू पीती हैं ।
तब जाके एक कवि की कलम ,
न्याय की आस करती है ।।
“जसवंत” अर्ज करे सरकार ,
एक छोटा सा काम करो ।
या तो सख्त सजा दो उनको ,
या भ्रूण हत्या को माफ करो ।।
— कवि जसवंत लाल खटीक

जसवंत लाल खटीक

रतना का गुड़ा ,देवगढ़ काव्य गोष्ठी मंच, राजसमन्द