कविता

शंकित थी प्रियंका

पीकर शराब इंसान शैतान बन गया था,
छोड़कर ईमान युवा हैवान बन गया था।
नोचा था बदन मिलकर, मार कर जलाया,
दैत्यसुत का वो स्वयं पहचान बन गया था।।

निकले थे जो कमाने, घर में दाल रोटी लाने,
मां बाप के अरमान को, वो ही लगे जलाने।
बन भेड़िया, समाज को ही जंगल बना कर,
पापाग्नि को बढ़ाकर मनुजता लगे मिटाने।।

दुष्कर्म कर रहे थे वे शैतान सा बनकर,
तन नोच रहे थे वे शैतान सा बनकर।
छल रुप में ये दानव अवसर तलास कर,
दुष्कृत्य मिलके करते, शैतान सा बनकर।।

अवसर बना इक शाम ये सहयोगी सा मिले,
भय दूर करनेवाला सफल योगी सा मिले।
नीयत नहीं थी साफ जातुधान सुतों की,
जग लूटने वाले असुर, वियोगी सा मिले।।

अंजान दनुजों से, शंकित थी प्रियंका,
बढ़ते सभी हाथों से, शंकित थी प्रियंका।
मजबूर थी सहयोग चाहिए था निशा में,
अंजाम भयंकर न हो शंकित थी प्रियंका।।

पर हाय “विधाता” तेरी सृष्टि का यह कलंक,
वह दाग बन गया लगा “सदानंद” पर कलंक।
बतला दो आज “अज” क्यों हैवान बनाया,
“कर्तार” हांथ तेरे क्यों ना मिटा यह कलंक।।

हर पल विलख कर तुमको पुकारा तो होगा,
छन-छन प्रभू तुम्हारा रस्ता निहारा तो होगा।
चंद घूंट लेने वाले निशिचर सुतों से लुटकर,
प्राणों की भीख में तुमको पुकारा तो होगा।।

प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं