कविता

बेचैन दिल

मेरी धड़कनों पर नाम लिखा है तुम्हारा,
कहना चाहूं मगर ,जताना नहीं आता है मुझे।

अक्सर बिना बात यूं ही मुस्कुराने लगी हूं मैं,
अपने विचारों को छुपाना नहीं आता है मुझे।

दिल की बात है निगाहों से समझ लो न,
इकरार ए मोहब्बत करना नहीं आता है मुझे।

मेरी चाहत की कदर नहीं तुझको जालिम,
फिर भी तेरा ही खयाल क्यों आता है मुझे।

कैसे भुला दूं मैं तेरी याद को दिल से,
प्यार करके भूल जाना नहीं आता है मुझे।

क्यों चैन नहीं मिलता इस दिल को,
हर वक्त यही सवाल सताता है मुझे।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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