कविता

अपना गांव करौंदी

ग्राम करौंदी की आओ पहचान बताते हैं,
बड़े-बड़े दो पावन धाम की महिमा गाते हैं।
चमत्कारिणी मां गायत्री का मंदिर यहां विशाल,
मां शारदा मंदिर का वैभव हम यहां दिखाते हैं।।

भक्ति भाव से मंदिर में सब महिमा गाते हैं,
मातारानी सम्मुख आकर अपनी व्यथा सुनाते हैं।
नहीं कह सका जो मित्रों से या अपने परिवार में,
मां के दरपर आकर अपनी हर बात बताते हैं।।

अर्द्ध शतक पहले जो पथ एक वीराना दिखता था,
संध्या की किरणों से पहले विकट वीराना दिखता था।
आज वहीं पर रौनक दिखती रेलमपेल बाजारों में,
भांति-भांति की सजी दुकानें जहां वीराना दिखता था।।

पर सच कहता हूं सारी रौनक बाजारों में दिखती है,
गांवों की गलियां अब भी एकदम वीरानी दिखती है।
एक समय था बल्ब टंगे थे सब खम्भों में विद्युत के,
विकट अंधेरे में लिपटी अब भ्रष्टतंत्र ही दिखती है।।

— प्रदीप कुमार तिवारी

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं