राजनीति

देश को बचाने की कवायद – हिंसा रोकें

पहले नोटबंदी लागू करो, फिर उसके फायदे गिनाओ. लोगों को लाइन में लगाओ, बेरोजगार बनाओ. छोटे-छोटे उद्योग धंधों को बंद करो. फिर उन्हें गलत साबित करो. उसी तरह पहले GST लागू करो. उसके फायदे बताओ. एक देश एक टैक्स! का प्रचार करो. उसमे सुधार पर सुधार करते जाओ. अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठता है तो बैठे, लोग बेरोजगार हों तो हों! ऊपर से महंगाई बढ़ाते जाओ. लोगों को प्याज, दाल, दूध, पेट्रोल, डीजल और अन्य महंगे सामानों के अवगुण बताते चलो. जब जनता के हित के सारे मुद्दे फेल हो जाएँ तो कोई न कोई राष्ट्रीय मुद्दा उछाल दो. जनता इस नए मुद्दे में उलझी रहेगी, और बस सरकार का काम हो गया!

CAA और NRC ऐसा ही कुछ है. इसके फलाफल क्या होनेवाला है, यह भविष्य के गर्भ में है, पर सड़कों पर बवाल जारी है. राष्ट्रीय और व्यक्तिगत सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है. कई जानें भी जा रही हैं. पर सरकार क्यों अपना कदम पीछे करेगी? उसे तो बहुमत प्राप्त है और बहुमत से ही इस बिल को संसद से पास कराया है, जो राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन चुका है. यह बात अलग है कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कोर्ट ही समुचित फैसला देगा.

उधर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष शरद पवार ने राजग सरकार पर हमला बोला और उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (Citizenship Amendment Act) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) देश को त्रस्त कर रहे गंभीर मुद्दों से “ध्यान हटाने की चाल” है. इससे न सिर्फ अल्पसंख्यक बल्कि जो लोग देश की एकता एवं प्रगति की चिंता करते हैं, वे सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे हैं. नया नागरिकता कानून देश की धार्मिक, सामाजिक एकता और सौहार्द को बिगाड़ेगा.” पवार ने पूछा कि संशोधित कानून के तहत केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के शरणार्थियों को ही नागरिकता क्यों दी जाएगी और श्रीलंका के तमिलों को क्यों नहीं. पवार ने कहा कि बिहार समेत आठ राज्यों ने कानून को लागू करने से इनकार कर दिया है और महाराष्ट्र का भी रुख यही रहना चाहिए. उन्होंने पूछा, “सीएए भले ही केंद्रीय कानून हो लेकिन इसको लागू राज्यों को करना है. लेकिन क्या राज्यों के पास ऐसा करने के लिए संसाधन एवं तंत्र है?”

दिल्ली के मुख्य मंत्री केजरीवाल और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव, दिल्ली के पूर्व राज्यपाल नजीब जंग आदि ने भी इसपर सवाल उठाये हैं.

अब जो पूरे देश में विरोध हो रहा है उनमे असामाजिक तत्व और राजनीतिक पार्टियाँ भी घुस गई है जो इन्हें अपने हक़ में भुनाने का प्रयास कर रही है. कई जगहों पर विरोध शांतिपूर्वक हो रहा है तो कहीं हिंसक वारदातें भी हो रही हैं.

बहुत सारे वीडियो आए हैं जिनमें पुलिस की बर्बरता दर्ज हुई है. वह एकतरफ़ा तरीक़े से लोगों के घरों में घुसकर मार रही है. कोई अकेला पुलिस से घिरा हुआ है और उस पर चारों तरफ़ से लाठियां बरसाई जा रही है. एक वीडियो में लोग एक दूसरे पर गिरे पड़े हैं और उन पर पुलिस बेरहमी से लाठियां बरसाती जा रही है. जब कोई पकड़े जाने की स्थिति में हैं तो उसे मारने का क्या मतलब? जब कोई घर में है और वहां हिंसा नहीं कर रहा है तो फिर घर में मारने का क्या मतलब? ज़ाहिर है पुलिस की दिलचस्पी आम गरीब लोगों को मारने में ज़्यादा है. उसके पास किसी को भी उपद्रवी बताकर पीटने का लाइसेंस है.

कई सारे वीडियो में पुलिस बदला लेती दिख रही है. वह आस पास की संपत्तियों को नुक़सान पहुंचा रही है. वहां खड़ी मोटरसाइकिल को तोड़ रही है. दुकानें तोड़ रही है. पत्थर चला रही है. इसका कोई आंकलन नहीं है कि पुलिस की हिंसा और तोड़फोड़ से कितने का नुक़सान हुआ है? यूनिवर्सिटी के भीतर तो शांति थी, लाइब्रेरी में तो हिंसा नहीं हो रही थी? यूपी में सात लोग गोली से मरे हैं. पुलिस आराम से कह देती है कि उसने गोली नहीं चलाई तो फिर वहां पर मौजूद वह क्या कर रही थी? उसके पास भी तो कैमरे होते हैं वही बता दें कि गोली कहां से और कैसे चल रही थी? जामिया मिल्लिया की हिंसा में तीन गोलियां चली हैं. फिर जब वीडियो आया जिसमें पुलिस ही गोली चलाते दिख रही है उसके बाद पुलिस और ज्यादातर मीडिया वाले चुप्पी मर गए.

जो भी है कुछ प्रदर्शनों में कुछ लोगों को बेलगाम होते देखा जा सकता है. उनके बीच से पत्थर चलाए जा रहे हैं. ऐसे लोग अपनी उत्तेजना से माहौल को तनावपूर्ण बना रहे हैं. वो अपनी गली में पत्थर चला कर दूसरे शहरों के प्रदर्शनों को कमजोर करते है. लोगों की उत्तेजना से पुलिस को कुछ भयंकर होने की आशंका में सतर्क और अतिसक्रिय होने का मौक़ा मिलता है. एक वीडियो अहमदाबाद का आया है. लोगों ने पुलिस को ही दबोच लिया है. मगर उसी भीड़ से सात नौजवान निकल कर आते हैं और पुलिस को बचाते भी हैं. इस वीडियो की खूब चर्चा हुई. वायरल जगत और मीडिया दोनों में लेकिन जिस वीडियो में कई सारे पुलिस वाले एक आदमी पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा रहे हैं उस पर चर्चा नहीं. दरियागंज से दो वीडियो घूम रहे हैं. उसमें पुलिस के लोग छत पर ईंटें तोड़ते देखे जा सकते हैं. एक वीडियो रात का है जिसमें गली में किसी को घेर कर मार रहे हैं. वो चीख रहा है फिर भी मारे जा रहे हैं.

दरियागंज का एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें पुलिस वाले डंडे से कार के शीशे तोड़ रहे हैं. यही दिल्ली पुलिस है जो चुपचाप तीस हज़ारी कोर्ट से चली आई. वकीलों ने तो कथित रूप से लॉकअप में आग लगा दी थी. पुलिस वालों को मारा था तब क्या आपने देखा था कि दिल्ली पुलिस उनके घरों और कमरों से खोज कर ला रही है? जो भी है पुलिस को हिंसा की छूट है. आत्मरक्षा के नाम पर उसकी हिंसा को सही मान लिया जाता है. कई वीडियो में पुलिस गालियां देती दिख रही है. लोगों को सांप्रदायिक बातें कह रही हैं. जामिया में लड़कियों को जिन्ना का पिल्ला कहा गया. बीजेपी के एक नेता कहते हैं कि दवा डालने पर कीड़े मकोड़े बिलबिला कर बाहर आ रहे हैं. यह समझ लेना चाहिए कि जिन लोगों का सत्ता पर नियंत्रण है उनकी भाषा ऐसी है. नागरिकता रजिस्टर और क़ानून का विरोध प्रदर्शन नेता विहीन है इसलिए हिंसा से बचाना लोगों की ही ज़िम्मेदारी है. जान-माल का नुक़सान ठीक नहीं है. हिंसा होने पर किसी को कोई इंसाफ़ नहीं होता है. लोगों को समझना चाहिए क़ानून बन चुका है. NRC आएगी तो यह मामला एक दिन का नहीं है. जो लोग इसके विरोध में हैं उनके धीरज और हौसले का इम्तहान है. एक दिन के लिए दौड़ लगाकर आ जाना आसान होता है. सरकार भी इंतज़ार में है कि दो चार दिनों में थक जाएंगे या फिर इतने लोग पुलिस की गोली से मार दिए जाएंगे कि प्रदर्शन का मक़सद ही समाप्त हो जाएगा.

इतना सब होने के बाद प्रधान मंत्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान से देश वासियों को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्ष द्वारा भ्रांतियां फैलाई जा रही है. NRC की कहीं कोई चर्चा नहीं है. यानी कि उन्होंने अमित शाह के बयान को झूठा कहा, जिसे संसद में अमित शाह ने जोर देकर कहा था कि बहुत जल्द NRC बिल आया रहा है इसी संसद से उसे पास कराएँगे. धनी हैं हमारे प्रधान मंत्री और धनी है हमारे गृह मंत्री. जनता के समझती है और क्या फैसला लेती है यह तो वही जाने. पर पर प्रधान मंत्री NRC पर फ़िलहाल यु टर्न लेते हुए दिखलाई पड़ रहे हैं. चाहे जो हो फ़िलहाल जो मुद्दा गर्म है वह शांत हो तो अच्छा है. उन्होंने सभी देश वासियों से हिंसा न करने और शांति बनाये रखने की अपील की, इसे सराहा जाना चाहिए. यही बात प्रधान मंत्री को पहले दिन कहनी चाहिए थी. तब तो वे कपड़े देखकर पह्चाहनने की बात कर रहे थे. हर तरीके से वोट हासिल करने के तरीकों में माहिर हैं हमारे प्रधान मंत्री. जयहिंद!

— जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर