पर्यावरण

चिड़ियों का तेजी से होता विलुप्तिकरण अत्यंत चिन्ताजनक

कुछ दिनों पूर्व समाचार पत्रों में एक बहुत ही दुःखद समाचार प्रकाशित हुआ था, जिसके अनुसार पिछले 50सालों में परिंदों की संख्या 3 अरब तक घट गई है, यह बहुत ही क्षुब्ध, विचलित और चिन्तित कर देने वाला समाचार है।अमेरिका के कार्नेल विश्वविद्यालय के शोधार्थियों का एक शोधपत्र साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है, इस शोध के अनुसार आज से 50 साल पहले उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में लगभग 10.1 अरब परिंदे थे, जिसमें से लगभग 3 अरब परिंदे, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बिल्लियों द्वारा अत्यधिक शिकार किए जाने, कार के शीशों और कांच की खिड़कियों से टकराने आदि के कारण असमय मारे गये हैं, अब उन देशों में इन परिंदों की संख्या घटकर 7.2 अरब ही बची है, जो अपने जंगल के आवास के उजड़ते जाने से धीरे -धीरे और भी कम होती जा रहीं हैं।

शोधार्थियों के अनुसार गौरैया, तोते, बुलबुल, कौए, गिद्ध आदि चिड़ियों की प्रजातियाँ तो तेजी से विलुप्त हो रही हैं परन्तु कबूतर, ब्लू बर्ड { नीलकंठ }आदि की संख्या बढ़ रही है । शोधपत्र के अनुसार ये मानवमित्र परिंदे कृषि को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों और एंसेफेलाइटिस जैसे प्राणघातक बीमारी फैलाने वाले मच्छरों को चटकर मानवप्रजाति की चुपचाप अकथनीय भलाई करते हैं । इनके विलुप्त होने से कृषि को नुकसान पहुँचाने वाले कीट बहुत तेजी से बढ़कर कृषि को तबाह तक कर सकते हैं। तेजी से विलुप्त होती चिड़ियों में अपने घर आँगन की घरेलू गौरैया है, जो बहुत ही चिन्ता की बात है ।
पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार इन परिंदों को बचाने के लिए पेड़ों, जंगलों को कम से कम काटना, बिल्लियों को खुले में घूमने से रोकना और खिड़कियों और कार के शीशों की बनावट में ऐसे परिवर्तन करने की सलाह दिए हैं, जिससे परिंदे उससे टकराकर भी घायल होकर न मरें । इसके अतिरिक्त गौरैया जैसी मानव बस्ती के आसपास रहने वाले परिंदों के संरक्षण के सघन अभियान चलाए जाने चाहिए, मसलन उनके लिए घोसले बनाकर अपने घरों में ऊँचाई वाले स्थान पर टांगना, उनके लिए प्रतिदिन एक मिट्टी के बर्तन या कटोरी में साफ पानी और एक मुट्ठी चावल, बाजरा या रोटी के टुकड़े खुली जगह पर बिखेरना आदि उपाय किए जा सकते हैं।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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