कविता

आत्महत्या

तुम्हारे जाने से
किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा
माह दो माह का रोना – धोना होगा
ज्यादा से ज्यादा, बस…!
सूरज वैसे ही निकलेगा,
चंदा वैसे ही चमकेगा,
तारे वैसे ही टिमटिमायेंगे
जैसे तुम्हारे जीते जी क्रियाशील हैं |
सच बताऊं –
ये सारा ब्रह्माण्ड दु:खी है
अकेले तुम ही नहीं…
तुम वो बनो
जो तुम्हें तुम्हारा हृदय बनाना चाह रहा है
किसी दूसरे के चाहने न चाहने से
तुम पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए
अगर तुम जीना चाहते हो
कुछ बनना चाहते हो तो,
उठो और हृदय की सुनो…
आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है
तुम एक नया इतिहास बना सकते हो
पत्थर को पिघलाकर मोम बना सकते हो
बस जग की नहीं
अपने हृदय की सुनो और
निरन्तर चलते हुए
सब्र करो,
विश्वास करो
स्वयं पर /
अपने इष्ट पर…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111