भाषा-साहित्य

असली साहित्य और साहित्यकार

कबीर, प्रेमचंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, गोर्की, लियो टॉलस्टॉय, तुर्गनेव, दोस्तोवयस्की, गोगोल, विलियम शेक्सपियर, शहीद-ए-आजम स्वर्गीय भगत सिंह, शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी, जयशंकर प्रसाद, हरिशंकर परसाई, कैफी आजमी, पाशा, वशीर बद्र, वसीम बरेलवी, जावेद अख्तर, अली सरदार जाफरी, गुलजार, निदा फ़ाजली, फैज अहमद फैज, फ़िराक़ गोरखपुरी, साहिर लुधियानवी, मुनव्वर राणा, राहत इंदौरी, अदम गोंडवी, विद्रोही आदिआदि लोग ऐसे ही साहित्यिक रत्न थे और हैं, जो जेलों में सड़ गये, फाँसी पर झूल गये, परन्तु तत्कालीन सत्ता की चाटुकारिता नहीं किए..न आज-कल की भाँड मिडिया की तरह सत्ता के चरणों में झुके , साहित्यकार न समाज से निरपेक्ष हो सकता है, न तत्कालीन भ्रष्ट व फॉसिस्ट व जनता पर जुल्म ढाने वाली सत्ता के मद में चूर राजनीति के विदूषकों के कुकृत्यों से अपने को अलग रख सकता है, जो अपने को साहित्यकार मानते हों और जनसमस्याओं, जनसरोकारों, जनता के सुख-दुख से कोई सरोकार नहीं रखते..उन कथित साहित्यकारों की रचनाओं पर, जो तत्कालीन राजनैतिक दुराग्रहों और दुर्नीतियों से अलग दुनिया में खोए रहते हैं. उन भाँड़ साहित्यकारों और आज की चमची मिडिया में मैं कोई खास फर्क नहीं करता वे दोनों एक ही प्रजाति के भेड़िए की औलाद हैं, जो भेड़ की खाल ओढ़े हैं, मैं उन्हें भी साहित्यकार नहीं मानता जो सत्ता के कर्णधारों के हाथों, माला पहनकर पुरस्कार लेते अपने फोटो अखबारों में या सोशल मिडिया पर प्रसारित करते या होते आह्लादित होते हैं और गर्व महसूस करते हैं, हमें गर्व है, शहीद-ए-आजम भगत सिंह पर, हमें गर्व है स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी पर, हमें गर्व है अमर कथाकार मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों पर जो जीए भी तो अपनी शर्तों पर और मरे भी तो रणबांकुरों की तरह, जिन्हें आज भी दुनिया शिद्दत से अपने मन-मंदिर में बिठाई हुई है, उन्हें भारत रत्न भले ही अभी तक नहीं मिला हो, परन्तु भारतरत्न पाए कई सत्ता के निकटवर्ती कथित साहित्यिक विभूतियों से उनकी कई लाख गुना मानमर्यादा और इज्जत अभी भी भारत की करोड़ों जनता के मानसपटल पर अमिट रूप से अंकित है, इसलिए वर्तमान समय की समाज की दुरुहताओं, परेशानियों और राजनैतिक व्यभिचारियों के जनता पर किए जा रहे अनवरत अत्याचार, शोषण आदि से निरपेक्ष रहकर साहित्य रचने वाला व्यक्ति साहित्यकार कहलाने का कतई अधिकारी ही नहीं है, अगर वह अपने को ‘साहित्यकार ‘मानने का भ्रम पाले है, तो वह भारतीय लोकमानस में प्रचलित ‘रंगा सियार’ से ज्यादे कुछ नहीं है, जो एक धोबी के नील लगाने वाले गड्ढे में गिरकर नीला होकर ‘सिंह ‘बनने का ‘भ्रम ‘पाल लिया था।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com