धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आत्मिक विज्ञान वेद

मानव का जीवन भौतिक पदार्थेां और आत्मा के ज्ञान पर निर्भर करता है। पदार्थेां के ज्ञान को विज्ञान कहते हैं और आत्मा के ज्ञान को वेद कहते हैं। वास्तव में पदार्थेां का ज्ञान भी आत्मा द्वारा संचालित हुआ है। इसलिए आत्मा के ज्ञान में भी विज्ञान समाहित हैं। इसलिए वेदों में सम्पूर्ण ज्ञान समाया हुआ है।

वेद दुनिया का प्रथम धर्मग्रंथ है। इसी के आधार पर दुनिया के अन्य मजहबों की उत्पत्ति हुई जिन्होंने वेदों के ज्ञान को अपने अपने तरीके से भिन्न भिन्न भाषा में प्रचारित किया। वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है। सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है। इसमें मानव की हर समस्या का समाधान है। वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।

                शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया। प्रथम तीन वेदों को अग्नि, वायु, सूर्य (आदित्य), से जोड़ा  जाता है और संभवत: अथर्वदेव को अंगिरा से उत्पन्न माना जाता है। एक ग्रंथ के अनुसार ब्रह्माजी के चारों मुख से वेदों की उत्पत्ति हुई।… वेद सबसे प्राचीनतम पुस्तक हैं इसलिए किसी व्यक्ति या स्थान का नाम वेदों पर से रखा जाना स्वाभाविक है। जैसे आज भी रामायण, महाभारत इत्यादि में आए शब्दों से मनुष्यों और स्थान आदि का नामकरण किया जाता है।

वेद चार है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेदA वेद की उत्पत्ति सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर से जीवात्मा के मार्ग दर्शन के लिए अर्थात् धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति के लिए हुई है, यह उत्तर प्राप्त होता है। वेदों के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

दरअसल ‘वेद’ शब्‍द की उत्‍पत्‍ति संस्‍कृत भाषा के ‘विद्’ धातु से हुई है। इस प्रकार वेद का शाब्‍दिक अर्थ है ‘ज्ञान के ग्रंथ’। इसी ‘विद्’ धातु से ‘विद्वान’ (ज्ञानी), ‘विद्या’ (ज्ञान) और ‘विदित’ (जाना हुआ) शब्‍द की उत्‍पत्‍ति भी हुई है। कुल मिलाकर ‘वेद’ का अर्थ है ‘जानने योग्‍य ज्ञान के ग्रंथ’।  

ऋग्वेद : वेदों में ऋग्वेद : वेदों में इसे सबसे पहला स्‍थान प्राप्‍त है। इसे दुनिया का सबसे प्राचीन लिखित ग्रंथ माना गया है। इसमें ज्ञान प्राप्‍ति के लिए लगभग 10 हजार गूढ़ मंत्रों को शामिल किया गया है। इसमें देवताओं के गुणों का विस्‍तार  से  वर्णन मिलता है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा का आदि की भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है।

सामवेद: इस में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। सामवेद गीतात्मक यानी गीत के रूप में है।  इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है।

               यजुर्वेद : यह तीसरा वेद है। इसमें कार्य (क्रिया), यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये गद्यात्मक मन्त्र हैं। इन मंत्रों की संख्‍या 3750 हैं। यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यह वेद गद्य मय है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मंत्र हैं। इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।

             अथर्ववेद : चतुर्वेद के क्रम में सबसे आखिरी और चौथा वेद है। इसमें गुण, धर्म, आरोग्य के साथ-साथ यज्ञ के लिये कवितामयी मंत्र भी शामिल हैं। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्देद आदि का जिक्र है। इसके 20 अध्यायों में 5687 मंत्र है। इसके आठ खण्ड हैं जिनमें भेषज वेद और धातु वेद ये दो नाम मिलते हैं।

वैदिक शाखाएं

         महर्षि पतंजलि के महाभाष्‍य के अनुसार वेदों की कुल 1,131 शाखाएं हैं। ऋग्वेद की 21 शाखाएं, सामवेद की 1000 शाखाएं, यजुर्वेद की 101 शाखाएं और अथर्ववेद की 9 शाखाएं हैं। लेकिन दुभाग्‍य से इन 1,131 वैदिक शाखाओं में से वर्तमान में केवल 12 शाखाएं ही मूल वैदिक ग्रंथों में उपलब्‍ध हैं। मौजूदा शाखाएं हैं –

  1. ऋगवेद : कुल 21 में से मात्र दो शाखाएं हैं यथा, शाकल और शांखायन शाखा
  2. यजुर्वेद : इसमें कृष्‍णयजुर्वेद की 86 शाखाओं में से केवल चार शाखाओं के ग्रंथ मौजूद हैं यथा, तैत्‍तिरीय, मैत्रायणीय, कठ और कपिष्‍ठल शाखा। शुक्‍लयजुर्वेद की कुल 15 शाखाओं में से केवल 2 शाखाओं के ग्रंथ प्राप्‍त हैं यथा माध्‍यन्‍दिनीय और काण्‍व शाखा।
  3. सामवेद : कुल एक हजार शाखाओं में से केवल 2 शाखाओं के ही ग्रन्थ प्राप्त हैं यथा, कौथुम और जैमिनीय शाखा।
  4. अथर्ववेद : कुल 9 शाखाओं में से केवल 2 शाखाओं के ही ग्रन्थ प्राप्त हैं यथा, शौनक और पिप्पलाद शाखा।

         वेद में विज्ञान है। एक वेद में व्याकरण है, गणित है, भूगोल है, खगोल है, नौका विद्या, विज्ञान विद्या, वायरलेस विद्या, तार विद्या पुस्तक है- ग्वेदादि,  tks bldh O;k[;k djrh gS । इस पुस्तक को पढ़िये? आप को पता लगेगा कि वेदों में कैसी-कैसी विद्या है। सब तरह की सत्य-विद्या वेद में बतायी गयी है।

वेदों का ज्ञान मनुष्य को ईश्वर की अनेक देनों में से एक बहुत बड़ी देन है। यदि ईश्वर सृष्टि की आदि में वेदों का ज्ञान न देता तो यह सिद्ध तथ्य है कि मनुष्य प्रयत्न करके भी भाषा की उत्पत्ति नहीं कर सकते थे और न हि अपने जीवन का सामान्य व्यवहार कर सकते थे। अतः ज्ञान व विज्ञान तथा मनुष्य के जीवन की रक्षा व उन्नति का आधार भी सृष्टि के आरम्भ व उसके बाद भी ईश्वर ही सिद्ध होता है।

प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान ancient astronomy ब्रह्मांड के गूढ रहस्यों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी भारतीयो को बहुत प्राचीन समय से रही है।

वेदों में वर्णित बिना ईंधन के उड़ने वाले विमान अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथी: ।

अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन् ।।

– ऋग्वेद(rigveda) 6 । 66 । 7

वेद लगभग साढ़े तीन हजार साल पहले की कृतियाँ हैं। इनमें उतना ही विज्ञान है जितना की तत्कालीन मानव समाज ने खोजा था। वैदिक साहित्य के चार प्रमुख अंगों – वेद (ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद), ब्राह्मण-ग्रंथ, उपनिषद तथा वेदांग से हमें वैदिक-कालीन समाज की वैज्ञानिक उपलब्धियों की जानकारी प्राप्त होती है।

आर्यभट– आर्यभट भारत के महान खगौलिय और गणितज्ञ (Mathematicians) थे। अपनी खगोलिय खोजों के बाद उन्होंने सार्वजनिक घोषणा की कि प्रथ्वी 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट और 30 सेकेण्ड में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। उनकी इस खोज की देश भर में सराहना हुई और उन्हें प्रोत्साहन मिला।

— डॉ विजय कुमार भार्गव

एफ -6/1,सेक्टर-7( मार्केट),वाशी नवी मुंबई 400703

डॉ. विजय कुमार भार्गव

1956 में एम.एस.सी की उपाधि अर्जित कर डाॅ. विजय कुमार ने पाॅंच वर्ष अध्यापन कार्य करके सन् 1961 में बी.ए.आर.सी में प्रवेश किया। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी की छात्रवृति पर न्यूयाॅर्क विश्वविद्यालय भेजे गए। वहाॅं से सभी विषयों में ए ग्रेड लेकर एमई की उपाधि अर्जित कर 1970 में भारत लौटे। अमरीका प्रवास ने भार्गव की सोच को बदल दिया और राष्ट्र के संसाधनों से जुड़े शोध के लिए मौलिक चिंतन, देश के लगाव की दृष्टि से स्वभाषा का महत्व और अपना लक्ष्य स्पष्ट परिलक्षित होने लगा। धर्मपत्नी के सहयोग से परमाणु ऊर्जा ज्ञान को जन-जन तक पहुॅंचाने के लिए आपने हिन्दी भाषा में अनेक संगोष्ठियाॅं की, 40 बड़े-बड़े चार्ट बनाए और संगोष्ठियों में प्रदर्शित किए, शेाध ग्रंथ द्विभाषिक प्रस्तुत किया जिसके लिए परमाणु ऊर्जा के तत्कालीन अध्यक्ष डाॅ. चिदम्बरम द्वारा सम्मानित किए गए। सन् 1995 में अवकाश प्राप्त करने के बाद भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की और हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। सम्प्रति दृष्टि हीनों के लिए हिन्दी ब्रेल में प्रकाशित विज्ञान पत्रिका का सम्पादन किया। अब हिन्दी में वैज्ञानिक पुस्तकें लिख रहें हैं। ‘क्षः किरण एवं नाभिकीय विकिरण द्वारा चिकित्सा‘, ‘पुस्तक एटम की कहानी’, ‘पर्यावरण एवम् विकिरण‘ एवं ‘आध्यात्मिक चिंतन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ लिख चुके हैं तथा अब ‘वेद और विज्ञान’ पर लिख रहे हैं।