कविता

शब्द

शब्दों से खिलवाड नही कर पाता हूँ,
छन्दों के बन्धन में नही बंध पाता हूँ|
सीधी सच्ची बात तुम्हें मै बतलाऊँ,
वेदो का सार प्रकृति उसमे पाता हूँ|
अर्थ नही प्रधान कभी सम्बन्धों मे,
रिश्तों से अनुबन्ध नही कर पाता हूँ|
मानवता हित सीखा जग मे जीना मरना,
सम्बन्धों से निर्वाह तभी मै कर पाता हूँ|
— अ कीर्ति वर्द्धन