गीत/नवगीत

“हो रहा विहान है”

हो रहा विहान है, रश्मियाँ जवान हैं,
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

मतकरो कुतर्क कुछ, सत्य स्वयं सिद्ध है,
हौसले से काम लो, पथ नहीं विरुद्ध है,
यत्न से सँवार लो, उजड़ रहा वितान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

मनुजता की नीड़ में, विषाद ही विषाद हैं,
धर्म प्रान्त-जाति के बढ़ रहे विवाद हैं,
एकता अखण्डता का, रो रहा विधान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

चोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
पंक में खिला कमल, खोजता है स्वच्छ जल,
मनुजता की आज तो, लुट रही दुकान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
चाँद अपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
नव विहान छेड़ता, नित्य नयी तान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

स्वाभिमान कह रहा, दम्भ मत उधार लो,
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो,
बेदिलों के दिलों को, अब सुमन बनाइए,
बस यही उपाय है, बस यही निदान है।
पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है