कहानी

लघुकथा – अपना पराया

” सौरी मैम पर आप कभी माँ नहीं बन सकती”  डाक्टर के ये शब्द कमला पर बिजली गिराने के लिए काफी थे । वह डाक्टर के क्लिनिक में थी,बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। क्लिनिक में इक्का दुक्की पेशेंट ही दिख रहे थे। अब क्या होगा? वह बेड पर अपने पति के सामने बैठी थी। कमला के बहते आँसूओं को देखकर अमित तड़प उठा।पर कमला के लाख समझाने पर भी दूसरी शादी के लिए राजी नहीं हुआ ।
दोनों ने बहुत सोचा और किसी बच्चे को गोद लेने का निर्णय किया। दूरदराज के  रिश्तेदार के यहाँ एक बच्चे के होने की बात पता चली ,जिसके माता पिता बचपन में ही गुजर गए थे। बच्चे को गोद लिया।सब कुछ ठीक चल रहा था।दोनों मिलकर कन्हैया को हर सुख सुविधा देने का प्रयास कर रहे थे ,जो उससे संभव था।
कन्हैया बड़ा हुआ,तो उसके शादी की बातचीत चली। अमित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था ।उसके घर में सुख सुविधा के सारे साधन उपलब्ध थे
लड़कीवालों ने ज्यादा छानबीन जरूरी नहीं समझा और कन्हैया की शादी रत्ना के साथ धूमधाम से संपन्न हो गयी। कुछ दिन सब सामान्य रहा,फिर सास बहू के बीच नोंक झोंक शुरू हो गयी। कमला  को बहू का सुबह देर तक सोना ,रात को पार्टियों में जाना,फिजूलखर्जी करना अच्छा नहीं लगता तो रत्ना सास की टोका टोकी से चिढ़ जाती।उसे लगता कि सास उस  पर जरूरत से ज्यादा नजर रखती है। सारी चीजें अव्यवस्थित होती जा रही थी नौबत यहाँ पहुँची कि सबका  साथ खाना भी छूट गया।एक दिन कमला ने बहू से कहा”देखो बहू आज कुछ पुराने परिचित घर आ रहे हैं तुम सिल्क की साड़ी पहन लो और सबको अपने हाथ से खाना परोस देना।
” पर मम्मी जी आज तो मेरा सहेलियों के साथ भूलभूलैया जाने का प्रोग्राम है ”  वह तुनक कर बोली।
“भूलभूलैया बाद में घूम लेना” कमला सास के रूतबे में बोली। बहू पैर पटकती वहाँ से चली गयी। शाम को बहू घर से गायब थी।कमला ने बहू को आड़े हाथों लिया ।खूब खरी खोटी सुनाया । गुस्से की रौ में उसके  मुँह से निकल गया” मेरा सगा बेटा होता तो आज  यह दिन नहीं देखना पड़ता”बात कन्हैया के दिल को लग गई। रत्ना रोने लगी।घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया।बात बिगड़ गयी।कन्हैया रत्ना को लेकर घर से निकल पड़ा। अमित कुछ दिनों कि लिए बाहर गया था।फोन से सारी बाते बताती कमला सुबकने लगी। अमित ने कहा ” तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा” ।

सूना घर कमला को काट खाने को दौड़ने लगा।वह पूजाघर में बैठ गयी।सामने राधा कृष्ण की मूर्ति लगी थी,वह अपलक उसे  निहारने लगी।उसकी नजरों के सामने अतीत के सारे दृश्य सजीव हो उठे।कन्हैया का घुटनों के बल चलना,दो दाँतों में हंसना ,स्कूल जाना,खाना खिलाना,गले से लगाना, घूमने जाना ,बड़ा होना  ,और भी बहुत  कुछ  …

घर से निकलने के बाद कन्हैया रात भर एक होटल में ठहरा।दोपहर के ट्रेन की  टिकट थी। वह स्टेशन पर बैठा था,तभी उसे वह बूढ़ा फकीर दिखा जो बचपन में उसे जादू के खेल दिखाया करता था। फकीर ने भी उसे पहचान लिया। बोला ” कहाँ चले कन्हैया बाबू? बहूरानी भी साथ हैं। मालकिन रह लेती हैं अब अकेली? बचपन में तो कहीं अकेले घूमने तक नहीं  जाने देती थी ।अब  बड़े हो गए हैं ना इसलिए मेरा तो देखा हुआ  है सब आँखों से … कितने खिलौने ..हारमोनियम .. तबला .. साइकिल …वह दाढ़ी खुजाते हुए बोल रहा  था। कन्हैया खामोश था। फकीर की बूढ़ी आँखों ने दुनिया देखी थी । उसे कुछ आभास हुआ ।अनायास बोला ” कन्हैया बाबू सब ठीक तो है,झगड़ा लड़ाई तो नहीं  हुई?

कन्हैया दुखी होकर बोला ” माँ हमें देखना नहीं  चाहती तो क्या करूँ”
बूढ़े फकीर ने एकदम से उसके आँखों में आँखें डाली और बोला  ” कन्हैया बाबू अगर तुम सगे बेटे होते तो अपनी माँ को कभी छोड़ कर नहीं  जाते” । कन्हैया निरूत्तर हो गया।

शाम का घुंधलका फैल गया था।पूरे चौबीस घंटे हो गए थे।कमला पूजाघर के चौखट पर निढ़ाल पड़ी थी।कन्हैया वापस लौट गया।माँ की दशा देखी .. आँखों से आँसूओं की अविरल धारा निकल पड़ी। माँ के चरण छूकर उसने कहा ” माँ मुझे माफ कर दो ” माँ ने जैसे कुछ सुना ही नहीं । कन्हैया के सर पर हाथ रखा, तभी दूर से शंख की आवाज गूँज उठी।बहू  तेजी से किचन में घुस गई।

— निभा कुमारी 

निभा कुमारी

शिक्षा - स्नातक हिन्दी भाषा में पुस्तक प्रकाशित। अनेक पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है । राजनगर , मधुबनी , बिहार