गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

यह दावा है मेरा मैं तुझे याद आता रहूंगा
हवा बनकर सांसों में तेरी समाता रहूंगा

तेरी रूह भी हो जाये बेचैन सुनकर जिसे
लिखकर ग़ज़लें ऐसी मैं अब गाता रहूंगा

सो भी ना सकोगे सुकूं से बिछड़कर मुझसे
यादों से अपनी ऐसे मैं तुझे जगाता रहूंगा

ख़ैरियत तक पूछेंगे लोग मेरी तुझसे ही
एक सवाल बनकर तुझे सताता रहूंगा

तुम बुझा देना मेरी राहों के सारे चराग़ों को
मैं तो जुगनू की तरह जगमगाता रहूंगा

आलोक कौशिक

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com