पर्यावरण

ऐसे बैक्टीरिया की खोज जो कॉर्बन डाइऑक्साइड खाकर चीनी बनाएंगे !

आधुनिक युग में वैज्ञानिक नित-प्रतिदिन ऐसे अविष्कार कर रहे हैं, जिन पर सहज विश्वास करना कठिन हो जाता है, उदाहरणार्थ समाचार पत्रों में अभी-अभी प्रकाशित खबरों के अनुसार इजरायली वैज्ञानिकों ने तेल अबीब स्थित ‘वेइजमेन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ‘और ‘रिसर्च सेंटर ‘के वैज्ञानिकों ने अपने दसियों साल के अनथक मेहनत, परिश्रम व मेधा शक्ति से एक ऐसे वैक्टीरिया को परिष्कृत किए हैं जो, इस दुनिया में अब तक चीनी के क्रिस्टलों पर रहकर, उसे खाकर वातावरण में कॉर्बन डाईऑक्साइड छोड़ते रहते थे, परन्तु वैज्ञानिकों ने इन वैक्टीरिया को सुगर कणों से विलग करने में सफलता प्राप्त कर ली है।अब इस वैक्टीरिया के जीन परिवर्तन करके, इसके गुणों में इसके स्वभाव के विपरीत परिवर्तन कर दिया है। मतलब यह वैक्टीरिया अब अपने स्वभाव के विपरीत व्यवहार करके वातावरण से कॉर्बन डाइऑक्साइड को लेकर उसे सुगर में परिवर्तित कर देंगे।
उक्त बैक्टीरिया का यह स्वभाव आज मानवमात्र के लिए कितना बहुत ही लाभदायक व वरदान साबित होगा, ये कहने की जरूरत नहीं है।वैज्ञानिकों का यह प्रयोग अगर शत-प्रतिशत सफल रही और इस बैक्टीरिया का उत्पादन बड़े स्केल पर होने लगे तो इस धरती को कॉर्बन जनित प्रदूषण, ग्रीन हाउस इफेक्ट्स और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी, क्योंकि ये वैक्टीरिया वायुमंडलीय कॉर्बन डाइऑक्साइड को तेजी से अवशोषित कर उसे पचाकर उसे सुगर में परिवर्तित कर देंगे। इससे दुनिया में किसानों को भविष्य में गन्ने और चुकन्दर आदि फ़सलों को उगाने और उससे चीनी बनाने आदि का खर्च बच जाएगा, इसकी जगह उस जमीन का उपयोग उन फसलों के उगाने में होगा, जो मानवप्रजाति के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। यह बहुत बड़ी खाद्य व जैविक क्रांति होगी।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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