लघुकथा

पहली बरसी

सुबह-सुबह जैसे ही वर्तिका ने खिड़की खोली, फूलों-पत्तों को छूकर उनसे वार्तालाप करती 90 साल की ऑस्ट्रेलियन आंटी प्रिटिशा को देखकर सिर्फ ड्राइंग रूम की ही नहीं उसकी यादों की खिड़की भी खुल गई.

”फूलों-पत्तों से वार्तालाप करना मुझे बहुत अच्छा लगता है. जानती हो क्यों?” प्रिटिशा आंटी बोली थीं.

”आंटी प्लीज़, बताइए न!” उसने निहोरा किया.

”ये फूल तुम्हारे अंकल ने लगाए हैं.” उनकी आंखें कुछ नम-सी लग रही थीं.

”85 साल की उम्र में मुझे अल्ज़ाइमर हो गया था. आप तो जानती ही होंगी, कि अल्ज़ाइमर का असर सिर्फ रोगी पर नहीं, पूरे परिवार पर पड़ता है. डिमेंशिया के कारण मैं गैस जलाकर बंद करना भूल जाती थी. चिमनी बजने लगती थी, तो डेनियल या पड़ोसी दौड़े आते थे, गैस बंद करके चिमनी को भी शांत करते थे.” वे फिर रुक गई थीं.

”पोते के कपड़े अपनी अलमारी में रख आती थी, सुबह ऑफिस जाते समय वह ढूंढता रह जाता था.” आंटी की आंखें कुछ ढूंढती-सी लग रही थीं.

”धीरे-धीरे सब अपना ध्यान खुद रखने लग गए थे और विशेष रूप से मेरा भी. अब तक मैं सबको खुश रखने की कोशिश में लगी रहती थी, अब सब, विशेषकर पतिदेव मुझे खुश रखने की कोशिश में लगे रहते थे.” आंटी की मुस्कान तनिक खिल गई थी.

”एक बार हमारे चीन में रहने वाले पड़ोसी एक महीने के लिए अपने देश जाने से पहले हमको अपनी फुलवारी की देखभाल करने को कह गए थे.”

”अक्सर हम सब पड़ोस में एक दूसरे का ध्यान रखते ही हैं.” वर्तिका ने कहा.

”वेलेंटाइन डे को मेरे पतिदेव पड़ोसी की फुलवारी को पानी देने गए, तो सुंदर-सा एक गुलाब का फूल तोड़ लाए और मुझे देते हुए ‘हैप्पी वेलेंटाइन डे प्रिटिशा!’ कहा. मेरा चेहरा खिल गया था और डेनियल का भी.” आंटी तनिक शरमा गई थीं, मानो अभी अंकल उन्हें फूल दे रहे थे.

”फिर डेनियल ने सोचा, कि यह तो पड़ोसी की फुलवारी का फूल था, मैं अपनी फुलवारी क्यों न बनाऊं? तब से ये फूल-पत्ते हमारे घर की शोभा बने हुए हैं.” आंटी ने एक फूल को दुलराते हुए कहा था.

ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग से पर्यावरण में धुएं के कारण पिछले कई दिनों से आंटी घर से बाहर नहीं निकल रही थीं. आज फिर फूलों-पत्तों से वार्तालाप!
”ओहो! आज डेनियल अंकल की पहली बरसी है!” वर्तिका के मन की वर्तिका जल गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “पहली बरसी

  • लीला तिवानी

    इंग्लैंड से गुरमैल भाई का इस ब्लॉग पर मेल से एक और संदेश-

    लीला बहन, एक बात भूल गया, यह अल्ज़ाइमर रोग बहुत बुरा होता है और इस रोग की बहुत सी बहने भी हैं जैसे पार्किसन रोग, औमिओत्रौफ़िल लेटरल स्रोसिज़, मल्टिपल स्रोसज़, एस्टोनिया और फुट ड्रॉप. इसमें और भी रोग हैं जो सभी के सभी बहुत बुरे हैं. अगर इस रोग से अचानक मुक्ति मिल जाए तो इंसान कितना खुश होगा, यह अंदाजा लगाना मुश्किल है. यह हमारे घर के फूल-पौधे हमारे जीवन के साथी हैं. इनसे बातें करते-करते कब कोई मिरेकल हो जाए, कौन जान सकता है! गुरमेल भमरा

  • लीला तिवानी

    ब्लॉगर सखी नीता जी के अनुरोध पर हमने आज ही लघुकथा ‘पहली बरसी’ पोस्ट की है, जो पार्किंसन रोग या अल्ज़ाइमर के बारे में है. इस रोग के अनेक प्रकार हैं, जिनका प्रारंभ अक्सर डिमेंशिया से होता है, लेकिन रोग का पता नहीं चलता है. बाद में तो इसका परिणाम बहुत भयंकर भी हो सकता है. इस लघुकथा में वर्तिका नाम है. वर्तिका का एक अर्थ बत्ती भी होता है. इसलिए हमने लघुकथा के अंत में लिखा है- ”वर्तिका के मन की वर्तिका जल गई थी.” यह लघुकथा फेसबुक लघुकथा मंच पर बहुत सराही गई थी. इस लघुकथा की नायिका प्रिटिशा ऑस्ट्रेलिया में हमारे घर के सामने रहती है.

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