कविता

मौन दीवार

दीवार कुछ नहीं कहती है,
हमेशा मौन रहती है,
बहुत कुछ सीखा है इससे,
मौन रहकर कैसे काम करते है।
अपने सारे सुख दुःख कहती हूं,
मेरे सारे रंग देखे है,
मेरा अपनों से  लड़ना झगड़ना देखा है।
मेरा अपमान देखा है,
मेरा स्वाभिमान भी देखा है,
मेरी हर ख़ुशी की साथी रही है,
चटान बनकर सहारा देती है।
मुझे बहुत हौसला देती है,
मेरा प्यार देखा है,
मेरी मासूमियतदेखी  है,
तूफानों से लड़ना सिखाती है,
दीवार  से हमेशा मैंने सीखा है ,
मौन रहकर सहनशील बनो।।
— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384