गीत/नवगीत

विधा-सुगत सवैया

दुग्ध पिलाकर अपने उर  का ,आँचल बीच समा लेती हो ।
अपने हाथों से सहलाकर, मन की थकन मिटा देती हो ।
बोध कराती ऊंच नीच का ,कर ममत्व की छाँव निराली ।
प्रथम शिक्षिका मात तुम्ही हो ,संस्कार सिखलाने वाली ।
अपने सुत के हित हितार्थ माँ ,तुम सर्वस्व लुटा देती हो ।
अपने हाथों से सहलाकर ,मन की थकन मिटा देती हो ।
मानव हो या पशु-पक्षी भी ,जननी तो जननी होती है ।
स्वार्थ ,कपट छल दम्भ से परे ,निश्छल माँ ममता होती है ।
पशु ,जीव नर और नारायण ,माता क्षुधा मिटा देती हो ।
अपने हाथों से सहलाकर ,मन की थकन मिटा देती हो ।
ऋणी हुआ मैं माता ऋण से , श्वाश श्वाश है कर्ज तुम्हारा ।
नहीं जुबां से कुछ कह पाऊं ,मैं बालक नादान तुम्हारा ।
विकल देख माँ अपने सुत को ,निज के दु:ख भुला देती हो ।
अपने हाथों से सहलाकर ,मन की थकन मिटा देती हो ।
— रीना गोयल

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर