कविता

हास्य व्यंग्य कविता – नववर्ष संकल्प

कैलेंडर तो बदल दिया , खुद में भी कुछ रंग भरना है
कंबल में दुबका सोच रहा , नए साल में क्या करना है

सोच रुकी सेहत पे जा के
उदर कमर के बाहर झाँके
वजन मुइ मँहगाई बनी है
लगे शतक की ओर ठनी है
सोच रहा कुछ करुँ उपाय
क्युँ ना कसरत ही की जाए
सुर्योदय के पुर्व जागरण
योग वोग और मेडिटेशन
पैदल चालन हल्की दौड़
उसके ऊपर वरजिश और
सेहत से फिट हो जाउँगा
काम में भी हिट हो जाउँगा
तभी ठंड ने किया कमाल
उलट गए सब नए ख्याल
अरे !
शर्मा जी भी तो भागे थे
सुबह सवेरे नित जागे थे
फिर भी तो बीमार पड़े थे
चार दिवस लाचार खड़े थे
इन सबसे कुछ लाभ नहीं है
हर कोई ‘अमिताभ’ नहीं है

फ़ौरन मन में ठान लिया तब , इस चक्कर में ना पड़ना है
कंबल में दुबका सोच रहा अब नए साल में क्या करना है

— समर नाथ मिश्र