कहानी

हौसले के पंख (रेडियो कहानी)

कुछ दिन पहले मेरे पतिदेव ने कैटरैक्ट का ऑपरेशन करवाया था. हमें ऑपरेशन करवाने दिल्ली से नोएडा जाना था. कार तो हमारे पास है, लेकिन कार चलाए कौन? मैंने कार चलाना सीखा नहीं, बच्चे अभी इतनी दूर कार चलाने लायक हुए नहीं हैं, केवल पतिदेव ही ड्राइविंग करते हैं. वे ले तो जाएंगे, लेकिन ऑपरेशन के बाद आते समय वे तो कार चला नहीं पाएंगे, इसलिए हमने कैब से ही जाने का विचार किया.

हम कैब बुक करके ऑपरेशन करवाने दिल्ली से नोएडा पहुंच गए. पतिदेव को तो जरूरी टेस्ट करवाने के बाद ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया. मैं भगवान से सब कुछ ठीक करने की दुआ करने लगी. तभी मेरी सहेली नयना का फोन आया. नयना मेरी सहेली कैसे बनी, उसकी भी एक रोचक कहानी है.

 

मैं दूध के डिपो पर दूध ले रही थी. तभी वहां एक महिला भी दूध लेने आई. उसने चार लीटर दूध लिया, पर वह दूध ले जाने के लिए थैली लाना भूल गई थी. डिपो वाला पर्यावरण-संरक्षण का संदेश देने के कारण पॉलीथिन न रखता है, न देता है. उसकी समस्या समझकर मैंने अपने पर्स से कपड़े की एक बड़ी थैली निकालकर उन्हें दे दी.

”बहुत-बहुत शुक्रिया, थैली बड़ी सुंदर है. कहां से मिली? मेरा नाम नयना है.” उसने कहा.

”यह थैली मुझे कहीं से मिली नहीं है, मैंने बनाई है.” मेरा जवाब था.

”कढ़ाई भी आपने की है?” वह हैरान थी.

”जी हां, मेरा एक हरा सूट पुराना हो गया था, उसकी हरी चुन्नी से चार थैलियां बन गईं. फिर मेरे मन में आया कि इस पर तो कढ़ाई करके पर्यावरण-संरक्षण का संदेश दिया जा सकता है, सो मैंने गहरे हरे रंग के धागे से कढ़ाई करके लिख दिया- ‘पेड़ लगाइए, पर्यावरण-को बचाइए’. जहां भी ले जाती हूं, लोग देखते ही रह जाते हैं और शायद इस संदेश से कुछ लोग सीखते और प्रेरणा भी लेते होंगे.” मैंने जवाब दिया.

”अच्छा अपना पता बताइए, ताकि मैं आपको यह थैली वापिस देने आ सकूं.” नयना बोली.

”लीजिए, यह क्या बात हुई! इस थैली को आप हमारा उपहार समझकर ही रख लीजिए, वैसे हम इसी कॉलोनी में 57 नंबर फ्लैट में रहते हैं.” मैंने उससे कहा.

”हम भी तो यहीं रहते हैं फ्लैट नं. 72 में, कल ही आए हैं. फिर मिलते रहेंगे. इतने अनमोल उपहार के लिए शुक्रिया.” हमने एक-दूसरे से मोबाइल नंबर भी एक्सचेंज कर लिए. फिर मिलते ही रहे और प्रेम बढ़ता रहा.

उस दिन अस्पताल में प्रार्थना करते हुए उसका फोन आया और बोली- ”शाम को क्या कर रही हो! मेरे साथ एक भग्वद्गीता डिस्कोर्स में चलना है.”

”सॉरी, आज तो नहीं चल पाऊंगी, पतिदेव को कैटरैक्ट के ऑपरेशन के लिए नोएडा लाई हुई हूं, ऑपरेशन ठीक हो गया है. दस मिनट में हम निकलने वाले हैं, इसलिए आज तो मैं व्यस्त रहूंगी.” मैंने कहा.

”कैसे जाओगी?” नयना ने पूछा.

”कैब बुक कराऊंगी.”

”अच्छा कौन-से अस्पताल में हो? मुझे बताओ, मैं भी नोएडा में ही हूं, कार को उधर मोड़ लेती हूं.”

मैंने अस्पताल का नाम बता दिया, पंद्रह मिनट में वह पहुंच भी गई और हमें आराम से घर पहुंचा दिया. रास्ते में उसने कहा- ”आप कार ड्राइव करना क्यों नहीं सीख लेतीं? बहुत काम आती है.”

”इस उम्र में कहां सीख पाऊंगी? वैसे तो ये ड्राइव कर ही लेते हैं, बाकी कैब से काम चल जाता है.” मेरा मायूस-सा जवाब था.

”लीजिए मैंने भी आपकी ही उम्र में ड्राइव करना सीखा था, आपके पतिदेव को कार सिखाने का समय नहीं मिलता, तो मैं आपके साथ चला करूंगी.” नयना ने मेरे हौसले को पंख लगाते हुए कहा.

फिर क्या था! मैंने ड्राइविंग सीखनी शुरु की, ट्रेनर के साथ सीखते हुए भी नयना मेरे साथ होती थी और प्रैक्टिस करते समय भी. एक महीने के अंदर ही मुझे कार ड्राइविंग का लाइसैंस मिल गया था. नयना ने हौसले को पंख जो लगा दिए थे.

चलते-चलते
यों तो हर दिन किसी-न-किसी रूप में विशेष होता है, पर आज का दिन तो बहुत ही विशेष है. आज तारीख है 20 जनवरी 2020. एक और विशेष बात- यों तो रेडियो पर हमारे प्रोग्राम आते रहते हैं, पर ब्लॉग के रूप में प्रस्तुत है हमारी पहली रेडियो कहानी- हौसले के पंख. इसमें संदेश क्या-क्या हैं, यह तो आप लोग ही बताएंगे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “हौसले के पंख (रेडियो कहानी)

  • डाॅ विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर और प्रेरक कहानी !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
    क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम् ॥
    क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है॥

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