कविता

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र का सत्तरवाँ साल
उमंग उत्सव वेमिशाल
जोश से भरे चेहरे खिले
तिरंगा देख मौज मस्ती करते मिले।
जनतंत्र का यह गणतंत्र दिवस
रखता है खास महत्व
समरसता को संजोकर सपनो में
खड़ा रहता है अड़िग आड़म्बर।
कभी न डगमगाने देता
कभी भी न बहकने देता
जरा सी गुस्ताखी करने वालो की
हमेशा औकात बता देता ।
जन गण मन हो शाम सुबह
राष्ट्रवाद की पुकार है
मंदिर है सबके लिए तिरंगा
जिन्हें देश से प्यार है।
बन्दे मातरम बन्दे मातरम
नारा नही संस्कार यह
देश में बधुत्व की खातिर
सबकी जुबान की धार यह।
भारत माँ बड़ी दयालु
सबके सपने सजाती
तभी तो सभी भारतवासी
भारत माँ की जयकार लगाते।
प्रणो से प्यारा तिरंगा हमारा
सदा यूँ ही चुमे अम्बर को
जान की बाजी हम लगा देंगे
जो नीचा दिखाये हमारे तिरंगे को।
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)