गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सारे शहर में चर्चा ये सरेआम हो गया
दोस्ती से ऊपर हिंदू इस्लाम हो गया

खड़ी कर दी मज़हब की दीवार तो सुन
अब भगवान मेरा परशुराम हो गया

गिरे हो तुम जबसे मेरी इन नज़रों में
तेरी नज़रों में काफ़िर मेरा नाम हो गया

कामयाबी मिल सकती थी तुझको लेकिन
नापाक था साजिश तेरा जो नाकाम हो गया

अजायबघरों में रखा ताज गर तेरा है
समझ ले भयानक तेरा अंजाम हो गया

लिखे शे’र मां पर तो तुझे मिली शोहरतें
किया तौहीन औरतों की बदनाम हो गया

दिखा नहीं जो कुछ दिनों तक अख़बारों में
तूने समझा कि ‘कौशिक’ गुमनाम हो गया

:- आलोक कौशिक 

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com