लघुकथा

यादों के झरोखे से-14

विरोध करेंगे, गतिरोध नहीं (लघुकथा)

 

”बहिनो और भाइयो, हमारे मन की आवाज है-
छिड़ने दो न्याय के तारों को
रोको अन्याय के धारों को.
अस्पतालों में हो रही अव्यवस्था को सुधारने के लिए हम प्रदर्शन कर रहे हैं. बेहतर स्वास्थ्य-सेवा प्राप्त करना हमारा अधिकार है. आप सब इससे सहमत तो हैं न!” शर्मिष्ठा ने विरोध-प्रदर्शन का आग़ाज़ करते हुए कहा.

”बिलकुल सहमत हैं-
रोको अन्याय के धारों को.” एक साथ सबकी आवाज गूंजी.

”हमें अस्पताल की लाइनों में अधिक देर तक न खड़ा होना पड़े, दवाइयां जल्दी और अच्छी उपलब्ध हों, डॉक्टर केवल वे दवाइयां ही न लिखें जो उस अस्पताल के पास ही उपलब्ध हों. बस इन्हीं छोटी-छोटी बातों के लिए ही हमारा आज का प्रदर्शन है. और हां, आपने सुना होगा कि कल सड़क हादसे के शिकार दो नाबालिग बच्चों ने पुलिसवालों के सामने ही सड़क पर तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया, लेकिन वे गाड़ी गंदी हो जाने के डर से उन्हें अपनी सरकारी गाड़ी से अस्पताल नहीं ले गए. यह इंसानियत के साथ सरासर ज़ुल्म है. ऐसी बातों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”

”बिलकुल जी बिलकुल
रोको अन्याय के धारों को.”

”शर्मिष्ठा जी,” एक पत्रकार जगह बनाते हुए वहां नमूदार हो गया था- ”आपके प्रदर्शन की एक ख़ास बात हमें बहुत पसंद आई. प्रदर्शन न केवल शांतिपूर्वक चल रहा है, बल्कि न तो स्वास्थ्य-सेवाओं को बाधित होने दिया जा रहा है, न सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. आप इसके बारे में कुछ कहना चाहेंगी?”

”बस, हम तो सबके लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं चाहते हैं, बाकी स्वास्थ्य-सेवाओं को बाधित करना या सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना तो इंसानियत के साथ गतिरोध करना है, हम विरोध करेंगे, गतिरोध नहीं. वो देखिए, हमारे पति-भाई-बेटे कैसे ग्रीन कॉरिडोर बनाकर एम्बुलैंस को जाने की जगह दे रहे हैं!”

”वाह बहुत अच्छे, मैं भी इस प्रदर्शन का हिस्सा बन जाता हूं. जोर से-
रोको अन्याय के धारों को.”

सब एक साथ- ”रोको अन्याय के धारों को.”

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “यादों के झरोखे से-14

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    प्रदर्शन करने से हमारी आवाज़ पर्शासन के कानों तक पाहुन्चती है लेकिन प्रदर्शन बगैर तोड़ फोड़ के शांतिपूर्वक होनी चाहिए .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. प्रदर्शन करने से हमारी आवाज़ प्रशासन के कानों तक पाहुन्चती है लेकिन प्रदर्शन बगैर तोड़-फोड़ के शांतिपूर्वक होना चाहिए. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    जी हां, हम विरोध करेंगे, गतिरोध नहीं. विरोध करना गलत नहीं है, विरोध करना भले ही हमारा अधिकार हो, लेकिन ‘गतिरोध-तोड़फोड़करना, सम्पत्ति और जानमाल को नुकसान न पहुंचाना हमारा कर्त्तव्य है’ इस बात को कतई नहीं भूलना चाहिए..

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