संस्मरण

शेरू का पुनर्जन्म

कुत्ते तब भी पाले जाते थे, लेकिन विदेशी नस्ल के नहीं। ज्यादातर कुत्ते आवारा ही होते थे, जिन्हें अब  स्ट्रीट डॉग कहा जाता है। गली – मोहल्लों
में  इंसानों के बीच उनका  गुजर – बसर हो जाता था। ऐसे कुत्तों के प्रति किसी प्रकार का विशेष  लगाव या नफरत की भावना भी तब बिल्कुल नहीं  थी। हां कभी – कभार नगरपालिका और  रेलवे  प्रशासन  की अलग  – अलग कुत्ते पकड़ने वाली  गाड़ियां जब मोहल्लों  में आती तो वैसे  ही खौफ फैल जाता  , जैसे पुलिस की गाड़ी देख अपराधियों में  दहशत होती है। समय के  साथ ऐसी गाड़ियों  में  भर  कर आवारा  कुत्तों को ले  जाने  का  चलन बंद हो गया।

इसके बाद  आवारा  कुत्तों  की अलग त्रासदी समाज में  जगह – जगह नजर  आने लगी। बहरहाल बचपन के दिनों में मुझ पर कुत्ते पालने का धुन  सवार हुआ। पता चला पास में  एक जगह  कुछ पिल्ले चिल्ल पों  मचाए रहते हैं। कुछ दोस्तों  के साथ वहां पहुंचा और पिल्लों के  बीच एक कुछ तेज सा  नजर आने वाला पिल्ला उठा लिया। कुछ दिनों में ही पिल्ला  सब का प्रिय बन गया। बच्चों  ने नाम  रखा शेरू। घर की  पालतू गायों  को दूध पीकर शेरू सचमुच शेर जैसा  तगड़ा हो गया। शेरू में कई  खूबियां थी, लेकिन कुछ कमियां भी थी। वो अचानक उग्र  हो कर आते – जाते लोगों पर हमले  कर देता। कईयों को उसने काटा। लोग डर से गली  के सामने  से  गुजरने  से खौफ खाने  लगे। इसके
बाद हमने  उसे  लोहे  की  मोटी  जंजीर से  बांधना शुरू  किया। केवल  रात में ही उसे  खोला  जाता।

मुझे अपने  फैसले  पर पछतावा  होने लगा, क्योंकि   लोगों से हमारे रिश्ते बिगड़ने लगे।  कुछ शुभचिंतकों ने उसे कहीं   दूर छोड़ आने  या जहर देकर मार देने  का सुझाव दिया। लेकिन  तब तक शेरू से  लगाव  इतना  बढ़ चुका था कि इस बात का ख्याल भी कलेजा चीर कर रख देता। अचानक आक्रामक हो जाने के सिवा शेरू में ऐसी कई  खूबियां थी जो उसे  साधारण कुत्तों  से  अलग करता था। परिवार के सदस्य की तरह शोक की स्थिति में उसकी आंखों से आंसू बहते मैने कई बार देखा था। खुशी  –  गम के  माहौल में  वो आक्रामकता मानो  भूल जाता। हालांकि आगंतुक डरे  – सहमे रहते। जीवन संध्या पर  शेरू कमजोर और बीमार रहने  लगा। हालांकि  अपनों को देखते ही उसकी आंखें  चमक उठती। आखिरकार ठंड की एक उदास शाम शेरू किसी मुसाफिर की तरह चलता बना… कुछ रह गया तो उसकी लोहे  की वो जंजीर , जिससे उसे बांध कर रखा जाता था। ।

उसके जाने  का गम  मुझे सालों  सालता रहा। किशोर उम्र में  ही  तय कर लिया कि  अब कभी कोई  जानवर नहीं पालूंगा। शेरू  की याद आते  ही सोचता इस नश्वर संसार में मोह – माया जितना  कम  रहे अच्छा। शेरू के जाने के बाद मन अपराध बोध से भी भर जाता। मैं शेरू  के  अचानक आक्रामक हो उठने  की वजह सोच कर परेशान  हो उठता। मुझे लगता कि अंजाने में मैं  शायद शेरू कि  किसी ऐसी  जरूरत को   नहीं भांप  पाया। जिसका बुरा असर उसकी शारीरिक – मानसिक सेहत पर पड़ा। कई  सालों  तक मैं कोई जानवर नहीं  पालने  के अपने  फैसले  पर अडिग रहा। लेकिन हाल में बेटे की जिद के  आगे झूकना  पड़ा। बेटे ने विदेशी नस्ल का  कुत्ता पाला। नाम रखा ओरियो।

चंद दिनों  का ही  था जब घर लाया गया। अपनी  सोच के  लिहाज से  मैं  उससे  दूरी बनाए रखने  का भरसक प्रयास करता रहा। लेकिन डरे – सहमे  रह कर भी वो  मेरे इर्द – गिर्द मंडराने की  कोशिश करता। मैने उसे कभी दुत्कारा तो नहीं लेकिन  कभी दुलार भी  नहीं  किया। लेकिन अपनी  सहज वृत्ति से ओरियो ने जल्द ही घर के  सभी लोगों  को अपना  बना  लिया। कुछ दिनों में ही आलम यह कि  उसे देखे  बिना हमें  चैन नहीं  तो परिवार के किसी सदस्य की अस्वाभाविक  अनुपस्थिति उसे बेचैन  कर देती। उसे  देख कर  मैं  सोच में पड़ जाता हूं  कि  आखिर कौन  सिखाता है इन्हें पालकों  से  प्यार  करना और वफादारी वगैरह। अभी वो चंद महीने  का ही है, लेकिन  परिवार की महिलाओं  व बच्चों के  मामले में उसकी भूमिका बिल्कुल किसी बॉडीगार्ड की तरह है। घर में हर किसी  के आगे – पीछे घूमते रह  कर  अपनी  वफादारी जतलाता  रहता है।  मासूम  बच्चों  की  तरह उन पर भी  जादू  कर देना  जो इनसे दूर रहना  चाहते हैं। ओरियो को देखता हूं तो लगता है शेरू का पुनर्जन्म  हुआ है।

— तारकेश कुमार ओझा

*तारकेश कुमार ओझा

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) पिन : 721301 जिला पश्चिम मेदिनीपुर संपर्क : 09434453934 , 9635221463