लघुकथा

काव्य-रचनाओं की संगोष्ठी

आज सदाबहार काव्यालय की संगोष्ठी में बहुत चहल-पहल थी. काव्य-रचनाओं की यह संगोष्ठी सदाबहार काव्यालय- 2 के समापन के अवसर पर आयोजित हुई थी. सदाबहार काव्यालय- 2 के सुहाने सफर में 22 कवियों की 70 काव्य-रचनाएं प्रकाशित हुई थीं. इस संगोष्ठी के बहाने उनको मिलने-मिलाने, कुछ सुनने-कुछ सुनाने का अवसर मिल रहा था.

स्वभावतः सभी काव्य-रचनाएं सज-धजकर आई थीं. अनोखे अंदाज में सुसज्जित ‘दरख्त’ कविता चप्पल पहनकर आई थी. ‘निःशब्द’ रहकर वह एक संदेश दे गई, काश! मैं चल सकती, तो तुम मुझे काटते नहीं, बस तनिक दूरी पर शिफ़्ट कर देते. दरख्त’ कविता का दूसरा संदेश था- ‘क्यों है मांगता?’ बस देना सीख. तुम्हारे अंदर ‘रक्त कणिका’ है, तो मेरे अंदर भी तो ‘रस कणिका’ है, तनिक उसका भी ध्यान रखो. ‘फिर-फिर बचपन मचलता रहेगा’ कहकर अपने रचयिता दिल्ली के सुदर्शन खन्ना को सादर नमन कर ‘दरख्त’ कविता अपने स्थान पर विराजमान हो गई.

अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठी ‘इंतजार’ कविता येलो मिडी ड्रेस पहनकर पहुंची थीं और कविता-पाठ करने से पहले ही सारी लाइमलाइट उसने चुरा ली.
‘आता नहीं दिल को करार,
इन्तजार में बसता प्यार,
लगे हाथ उसने ‘इतना ज़रूर मैं चाहूँगा’ का जिक्र भी कर दिया-
‘जहां है मेरा जीवन बीता
वहीं की मिट्टी मैं बन जाऊं’
मुझसे पहले मंच पर ‘दरख्त’ कविता पढ़ी जा चुकी है, मेरा भी कहना है-
‘कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!’ इतना कहकर लुधियाना के पास दोराहे के रहने वाले अपने रचयिता रविंदर सूदन को नमन कर लहराती हुई येलो मिडी ड्रेस वाली वह कविता अपनी कुर्सी पर बैठ गई और पूरा हॉल वाह-वाह, सुभान अल्लाह, इरशाद-इरशाद की गूंज से गुंजित हो रहा था.

पठानी सूट में जंच रही काव्य रचना ‘और मुझे जीना है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!’ ने तो समां ही बांध दिया-
”कहाँ था तब, कहाँ हूँ अब
न सवाल सीधा न जवाब सीधा
शुरू करूँ कहाँ से विराम लगाऊं कहाँ
समय ने ही तो मुझे सींचा.”
”मेरे रचयिता गुरमेल भमरा हैं तो भारतीय मूल के, लेकिन एक अरसे से इंग्लैंड में रह रहे हैं, फिर भी उनका दिल पूरी तरह से हिंदुस्तानी है. यह कहकर उसने अपनी कुर्सी संभाल ली.

काले सूट पर टाई डाटे ”काश” कविता इतराती हुई मंच पर आई, पर उसकी प्रस्तुति में एक अनोखा दर्द था-
”काश!
काश मैं कोई कविता होता
कोई कवि मुझे भी रचता!”
शीघ्र ही वह संभल गई और कहने लगी-
”शब्द गुंजित हो रहे और रस प्रफुल्लित हो रहा
कल्पना के बादलों संग, मन उमंगें भर रहा”
इन उमंगों से एक प्रेम-कथा झांक रही थी-
”ऐ सखी तुमसे ये कैसा बंधन, ये कैसा रिश्ता ?
ये कौन सी अदृश्य डोर है, जो मुझे तुमसे बांधे है?”
प्रेम-कथा फिर बचपन तक पहुंच गई थी-
”मैं अल्हड़ हूँ, मैं कोमल हूँ, मैं, हूँ एक पुलकित पंग-पराग,
हाँ मैं बचपन हूँ!”
इस बचपने में भी एक इरादा था-
”इरादा कर लिया मैंने
फ़क़त जिंदा नहीं रहना
उडूँगा आसमां पर मैं
फ़क़त पैदल नहीं चलना.”
इसी इरादे के साथ अपने हरिद्वार में रहने वाले अपने रचयिता गौरव द्विवेदी को नमन कर वह अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गई.

पिंक ड्रेस के साथ डायमंड की जूलरी पहने स्टाइलिश अवतार में अवतरित हुई काव्य-रचना खोल दो मुट्ठी. आते ही उसने ललकारा-
”खोल दो मुट्ठी, बिखेर दो कंचे,
उड़ा दो पतंगें, गगन में ऊंचे!
आसमां को छूना है,
बाजुओं में भरना है!”
बचपन को याद करते हुए उसने ‘परिंदे घर लौट आए!’ का जिक्र करते हुए कहा-
”परिंदों ने छोड़ा घोंसला, मखमली पर फैलाए!
खोजने नन्हों के लिए दाना, आसमान नाप आए!”
इसके बाद ”सदाबहार काव्यालय का कारवां” नापते हुए कहा-
”कदमों-से-कदम मिले, राही नए जुड़ गए!
वक़्त के मस्तक पर, अमृत कलश सज गए!”
इसी के साथ अपनी रचयिता पवई… मुम्बई की निवासी कुसुम सुराणा को नमन करते हुए अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गई.

स्कर्ट संग सॉक्स लुक पर चैकदार कोट पहने बच्ची-सी बनी काव्य रचना ”मैं हूं नटखट बचपन” आई और अपनी नटखटता उजागर करती हुई बोली-
”प्रकृति की गोद में,
ममता की घनी छांव में,
मैं हूं नटखट मासूम बचपन
हंसे-खिलखिलाये मेरा लड़कपन.”
किताबों-सा मित्र नहीं कहना भी वह नहीं भूली-
”मित्र हमारे हैं बहुतेरे,
किताबों-सा नहीं मित्र है कोई,
ज्ञान-भंडार की तिजोरी जादुई,
कथा, कहानी, रचनाएँ अनूठी” कहती हुई इस काव्य रचना ने सांस्कृतिक नगरी पुणे मे रहने वाली अपनी रचयिता चंचल जैन को नमन कर अपनी कुर्सी को सुशोभित किया.

सबका अभिवादन करती हुई जीन पर लाल शर्ट डाटे काव्य रचना ‘महक-चहक; आई और अपनी महक-चहक बढ़ाने के साथ ‘बचाओ जंगल, मनाओ मंगल.’ गीत भी गाया. ‘बिल्ली-चूहे’ को भी वह नहीं भूली. और तो और उत्तराखंड के निवासी अपने रचयिता प्रकृति प्रेमी इंद्रेश उनियाल की बेहतरीन रचना ‘पार दरिया के फिर भी पहुँच जाता हूँ ‘ का उल्लेख करना भी नहीं भूली-
”किश्ती डोलती रही भंवर में मेरी
पार दरिया के फिर भी पहुँच जाता हूँ.”
बजती हुई तालियों की गड़गड़ाहट पर विनम्रता से सबका अभिवादन स्वीकार करती हुई वह अपनी कुर्सी पर बैठ गई.

सर्दी के मौसम का जायजा लेती हुई सफेद रंग की ऊनी जर्सी से सुसज्जित सदाबहार कविता ‘मौसम’
”सीने से लगाकर, दिल में बिठा कर,
कभी नाम देकर, अपना बनाकर,
इसे अपने अनुकूल बना सका,
हर दर्द में भी मौसम सुहाना लगा.”
और
”प्रेम और करुणा भरे शब्द,
ऐसे मूसलाधार बरसे,
हर शहर का मौसम सुहाना लगे
हर दर्द में भी मौसम सुहाना लगे.”
कहकर हर मौसम में खुश रहने का सुहाँआ संदेश देकर मौसम विहार दिल्ली के निवासी प्रकाश मौसम को नमन कर अपनी सीट पर विराजमान हो गई.

अंत में केसरिया साड़ी पहने हुए काव्य रचना ‘सूर्य का प्रभामंडल’ ने-
”हर एक का एक औरा होता है,
जिसे हम प्रभामंडल कहते हैं,
इसी प्रभामंडल में उसके सभी सद्गुण,
निवास करते हैं.”
कहते हुए सूर्य के प्रभामंडल से परिचित करवाया. फिर पुस्तकें, नये साल का तराना, अहसास, मुस्काएं खुशियां-ही-खुशियां आदि को समक्ष रखते हुए मात सरस्वती की वंदना भी की और ‘हम आतंक के साए में जी रहे हैं’ कहकर सबको सावधान भी किया. लबों पर हो खुशियों की लाली और चलती रही जिंदगी का उल्लेख करते हुए उसने अपनी रचयिता कभी दिल्ली कभी सिडनी की निवासी लीला तिवानी को नमन करते हुए अपनी एडिटर की भूमिका की अनुशंसा करते हुए सबको सप्रेम जलपान करने का अनुरोध किया और काव्य-रचनाओं की संगोष्ठी की समाप्ति की घोषणा भी की.

एडिटर की महत्त्वपूर्ण भूमिका की गरिमा को स्वीकारते हुए सभी काव्य रचनाओं ने सप्रेम जलपान ग्रहण किया और अगले सदाबहार काव्यालय की रूपरेखा बनाने में लग गईं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “काव्य-रचनाओं की संगोष्ठी

  • लीला तिवानी

    चलते-चलते
    आप सबको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा, कि इस रचना को प्रकाशित करने के बाद जब हमने इसी रचना को ‘जय विजय’ पर प्रकाशित किया तो Howdy की तरफ से हमें निम्नलिखित सूचना मिली और सभी विधाओं में 5 out of 5 stars 18 मिले हैं. यह आप सबकी भी विशेष उपलब्धि है. पाठकों और कामेंटेटर्स के सहयोग के बिना ऐसी उपलब्धि नामुमकिन है. आप सबको कोटिशः हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं.
    Howdy, लीला तिवानी! It seems that you have been using this theme for more than 15 days. We hope you are happy with everything that the theme has to offer. If you can spare a minute, please help us by leaving a 5-star review on WordPress.org. By spreading the love, we can continue to develop new amazing features in the future, for free!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सबी रचेताओं को एक माला में पिरो दिया लीला बहन . बहुत अछे से मंथन किया है सबी रचनाओं को .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपकी सटीक प्रतिक्रिया हमारे लिए आशीर्वाद के समान है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया धन्यवाद.

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