बालकविता “सूरज कितना घबराया है”
फागुन में कुहरा छाया है।
सूरज कितना घबराया है।।
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अलसाये पक्षी लगते हैं।
राह उजाले की तकते हैं।।
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सूरज जब धरती पर आये।
तब हम दाना चुगने जायें।।
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भुवन भास्कर हरो कुहासा।
समझो खग के मन की भाषा।।
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बिल्ली सुस्ताने को आई।
लेकिन यहाँ धूप नही पाई।।
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नीचे जाने की अब ठानी।
ठण्डक से है जान बचानी।।
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बच्चों से वह बोली म्याऊँ।
बिस्तर में जाकर छिप जाऊँ।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)