लघुकथा

लघुकथा – वंश

नरेगा यानी कि मनरेगा ! भारत सरकार की वह योजना, जिससे गरीबों का भला होने वाला था, परन्तु भला हो गया मनरेगा से जुड़े अधिकारियों का | उन्हीं अधिकारियों में से एक हैं सम्पतराम, जो कभी टूटी-फूटी साईकिल पर चला करते थे, वे आजकल बुलेरो गाड़ी से मंत्री वाले ठाठवाठ में चलते हैं | उनकी मिट्टी वाली झोपड़ी कब राज महल में बदल गई किसी को पता भी नहीं चला |
रोड़पती से देखते ही देखते करोड़पती बने सम्पतराम आलीशान बरामदे में आराम कुर्सी पर बेचैन से आधे बैठे – आधे लेटे किसी बड़ी कम्पनी के पंखे की हवा खा रहे थे | कि तभी अन्दर से बाहर आई बूढ़ी काकी बोली, ‘एम्बुलेंस वालों को फोन करके मना कर दो, बिटिया आ चुकी है |’
‘बिटिया’ शब्द सुनते ही सम्पतराम का चेहरा एकदम पीला पड़ गया, पसीने से तरबतर धड़ाम से आराम कुर्सी पर गिर पड़े |
‘बेटा सम्पत ! संभालो अपने आप को, सब ईश्वर की देन है | ये छटवीं बेटी है, देखना सातवीं संतान पर नार पलट जायेगा (नार पलटना – एक ग्रामीण कहावत) और बेटा ही पैदा होगा | मेरा दिल कहता है तेरा वंश जरूर चलेगा |’ काकी सम्पतराम को धीरज बंधाकर चली गई |
और आलीशान घर से नवजात शिशु के रोने की आवाज आनी शुरू हो चुकी थी… |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111