गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

गर बिकी ये सल्तनत फिर क्या यहाँ रह जायेगा ।
चाहतें मिट जाएँगी ख़ाली गुमाँ रह जाएगा ।।

छीन लेगी अब किताबें ये सियासत फ़ख्र से ।
नौजवां के हाथ बस तीरों कमां रह जायेगा ।।

गोलियां उसने चला दी अम्न के सीने पे जब ।
फिर हमारे सब्र का तो इम्तिहाँ रह जायेगा ।।

खेलिए मत आग से यूँ कुर्सियों के वास्ते ।
शह्र जल जाएगा साहब और धुवाँ रह जायेगा ।।

इस तरह तोड़े गये हैं दिल फ़ज़ा में दोस्तों ।
फ़ासला कुछ तो हमारे दरमियाँ रह जायेगा ।।

कुछ भी कहना है बहुत मुश्किल सुनो इस दौर में ।
देश का अम्नो सुकूँ कितना यहाँ रह जायेगा ।।

कौन सी साज़िश रचोगे ये बता दो तुम हमें ।
जब तुम्हारा फ़लसफ़ा भी रायगां रह जाएगा ।।

दर्द पर खामोश रहना है गुनाहों का सबब ।
फिर कोई महरूम हक़ से बेजुबां रह जायेगा ।।

वक्त तूफां ही बताएगा परिंदे को कभी ।
इस शज़र पर कब तलक ये आशियाँ रह जायेगा ।।

शौक़ से तू मुफ़लिसों की हसरतों का क़त्ल कर ।
पर यहां आबाद इनका कारवां रह जाएगा ।।

चाहता पढ़ना नहीं जो नब्ज़ जनता की यहाँ ।
एक दिन गफ़लत में कोई हुक्मरां रह जायेगा ।।

अर्थ – रायगां – व्यर्थ

-नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com