मुक्तक/दोहा

मुक्तक

“मुक्तक”

नया सवेरा हो रहा, फिर क्यों मूर्छित फूल।
कुछ रहस्य इसमें छुपा, मत करना फिर भूल।
बासी खाना देखकर, क्यों ललचायें जीव-
बुझ जाएगी चाँदनी, शूल समाहित मूल।।

नित नव राह दिखा रहे, कुंठा में हैं लोग।
बिना कर्म के चाहते, मिल जाए मन भोग।
सही बात पर चीखते, झूठों के सरदार-
समझ न आए नियम तो, कर लें थोड़ा योग।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरीी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ