गीतिका/ग़ज़ल

रियाया इससे पहले की बग़ावत पर उतर आए..

रियाया इससे पहले की बग़ावत पर उतर आए
अमीरे शहर से कह दो शराफ़त पर उतर आए

दिया क्या साथ हमने मुफ़लिसों की हक़परस्ती का
हमारे दोस्त ही हमसे अदावत पर उतर आए

तुम्ही से थी हमें उम्मीद दोगे साथ हर हालत
मगर ये क्या हुआ तुम भी शिकायत पर उतर आए

तुम्हें माना रियाया ने अलग उस भीड़ से लेकिन
मियाँ तुम भी उसी ओछी सियासत पर उतर आए

हटें इक दिन मुहब्बत पर लगी पाबंदियाँ शायद
हमारी चाहतों का चाँद फिर छत पर उतर आए

भरोसा था हमें जिन पर ज़ियादा ख़ुद से भी ये क्या
वही अपने अमानत में खयानत पर उतर आए

बढ़ी है ज़र कमाने की हवस इस तौर लोगों में
कि रिश्ते भावनाओं की तिजारत पर उतर आए

सतीश बंसल
३१.०१.२०२०

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.