गीत/नवगीत

पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…

बगिया में ठूठ हुई शाखों, को देख निराश न हो माली।
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा।।

दुख देते हैं पीड़ा के पल, उल्लासित करता हर्ष कभी।
सबके जीवन में आता है, अपकर्ष कभी उत्कर्ष कभी।।
परिवर्तन का है नियम अटल, कोई भी रोक न पाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…

फूलों का खिलना बंद हुआ, माना हरियाली नही रही।
भँवरों की गुंजन कलियों की, वो अदा निराली नही रही।।
पर काल चक्र चलते चलते, फिर चक्र वही दोहराएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…

पोखर में पड़ी दरारें क्या, चिंता की रेखा माथे पर।
मिट जाएंगी जब झूम झूम, कर बरसेगा सावन जमकर।।
नयनों के निर्झर रोक समय, नयनों में स्वप्न सजाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…

है क्षणिक वेदनाओं का पल, उपवन की रंगत का खोना।
तैयारी नवल सृजन की है, तरु शाखों कर पतझर होना।।
यह याद रहे तरुपात यही, कल कोंपल नवल उगाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…

सतीश बंसल
०७.०२.२०२०

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.