कविता

अपरिभाषित प्रेम

मैं
तुम्हे कैसे बताऊँ
कैसे समझाऊँ
कि जो कुछ तुम
मेरे बारे में सोचते हो
वही सब कुछ मेरे अंतर्मन में भी
करवट लेता है
जो कल्पनाएं
जो भावनाएं
मेरे प्रति
तुम संजोते हो
वही मेरे अन्दर
एक ज्वार की तरह हैं
लेकिन
फर्क इतना है बस
तुम अपने अंतर्मन को
शब्दों में वयक्त कर सकते हो
और मैं
अपने अन्तर्मम को
शब्द रूप देने में असमर्थ हूँ
तुम भाषा हो
मैं मौन हूँ
इसलिए
तुम सुनो
जो मैं नहीं कहती
तुम  समझो
जो मैं नहीं समझा सकती
और प्रेम करो
मुझसे
मेरी अव्यक्त भावनाओं से।।
@ नमिता राकेश