मुक्तक/दोहा

कितना बदल गया परिवेश

वेलेंटाइन  के  चक्कर  में  अजब- गजब है  वेश।
पुलवामा  की   कुर्बानी   को  भूल   रहा है देश।।
सही- गलत के मिश्रण से हर ओर बढ़ा है क्लेश।
मन  को रँगना  छोड़  लगे  रँगने  सतरंगी  केश।।
पछुवा  पवन  सदा झकझोरे संस्कृति होती शेष।
सबके  अपने शब्दकोश, शब्दों के भाव विशेष।।
कर्तव्यों  को  भूल  मनुज  हक के  देता आदेश।
धर्मों  पर  कब्जा  कर  बैठा  हो   जैसे  लंकेश।।
कबिरा  के  ढाई  आखर  का बचा सिर्फ उपदेश।
मन  के  चक्षु  निहार  रहा  बैठा बेबस अवधेश।।

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन