कविता

प्राची

प्राची के तट से उठकर दिनकर मुस्काये।
खग कुल ने मधुरस में भींगे गीत सुनाये।।
कर्मवीर  चल  पड़े सपन को पूरा करने।
जिससे जितना हो सम्भव,पर पीड़ा हरने।।
अगर उठे हो ऊपर  तो  सूरज बन जाओ।
होकर धुर निष्पक्ष धरा रौशन कर आओ।।
सागर  बनने की इच्छा यदि मन में पालो।
उर में रख सामर्थ्य, मगर अर्णव सम्हालो।।
अगर पवन बनकर उड़ना भाता हो मन को।
जैव जगत में प्राण वायु बन सींचो तन को।।
इन्द्रासन की भूख  जिन्हें छल छद्म करेंगे।
नाना  हथकंडे    अपनाकर   लोभ वरेंगे।।
धर्म – कर्म हैं पूरक,जैव – जगत उद्धारक।
बनो नहीं निज स्वार्थवशी होकर संहारक।।
कलम हाथ में गहकर कवि बनना गर ठानो।
रच कबीर की वाणी      मानवता पहचानो।।

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन